Episodios
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जिसे सब लोग दिन समझते हैं वह आत्मसंयमी के लिए अज्ञानता की रात्रि है तथा जो सब जीवों के लिए रात्रि है, वह आत्मविश्लेषी मुनियों के लिए दिन है।
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योगीजन आसक्ति को त्याग कर अपने शरीर, इन्द्रिय, मन और बुद्धि द्वारा केवल अपने शुद्धिकरण के उद्देश्य से कर्म करते हैं |
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¿Faltan episodios?
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आत्मा अखंडित और अज्वलनशील है, इसे न तो गीला किया जा सकता है और न ही सुखाया जा सकता है। यह आत्मा शाश्वत, सर्वव्यापी, अपरिर्वतनीय, अचल और अनादि है
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चार प्रकार के लोग मेरी शरण ग्रहण नहीं करते-वे जो ज्ञान से वंचित हैं, वे जो अपनी निकृष्ट प्रवृति के कारण मुझे जानने में समर्थ होकर भी आलस्य के अधीन होकर मुझे जानने का प्रयास नहीं करते, जिनकी बुद्धि भ्रमित है और जो आसुरी प्रवृति के हैं।
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सुनिए भगवतगीता से यह श्लोक, जो बताएगा आपको क्या होता है कर्म योग और संन्यास योग |
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महापुरुष जो भी कर्म करते हैं, सामान्य जन उनका पालन करते हैं, वे जो भी आदर्श स्थापित करते हैं, सारा संसार उनका अनुसरण करता है।
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वे कर्मयोगी जो न तो कोई कामना करते हैं और न ही किसी से घृणा करते हैं उन्हें नित्य संन्यासी माना जाना चाहिए। हे महाबाहु अर्जुन! सभी प्रकार के द्वन्द्वों से मुक्त होने के कारण वे माया के बंधनों से सरलता से मुक्ति पा लेते हैं।
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जो मनुष्य किसी प्रकार के दुखों में क्षुब्ध नहीं होता जो सुख की लालसा नहीं करता और जो आसक्ति, भय और क्रोध से मुक्त रहता है, वह स्थिर बुद्धि वाला मनीषी कहलाता है
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क्या आत्मा मरती है ?
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क्रोध साक्षात् यम है। तृष्णा नरक की ओर ले जाने वाली वैतरणी है।
ज्ञान कामधेनु है और संतोष ही तो नंदनवन है।See omnystudio.com/listener for privacy information.
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इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के साथ होने से सफलता, समृद्धि, और धर्म का अनिवार्य रूप से प्राप्त होना बताया गया है
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चाणक्य नीति के अनुसार हमेशा अच्छी चीज़ और अच्छी वस्तु की ओर आकर्षित होना चाहिए |
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वह व्यक्ति जो अलग – अलग जगहों या देशो में घूमता है और विद्वानों की सेवा करता है उसकी बुद्धि उसी तरह से बढती है जैसे तेल का बूंद पानी में गिरने के बाद फ़ैल जाता है.
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मैं नटखट कृष्ण की पूजा करता हूं, जो व्रजा का एकमात्र आभूषण है, जो सभी पापों (उनके भक्तों) को नष्ट कर देता है, जो अपने भक्तों के मन को प्रसन्न करता है, नंद का आनंद, जिसका सिर मोर पंख से सुशोभित है, जो एक मधुर-ध्वनि रखता है उसके हाथ में बांसुरी, और जो प्रेम की कला का सागर है।
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यह श्लोक बताता है कि गुणों का सही या गलत उपयोग व्यक्ति की प्रवृति को दर्शाता है |
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यह श्लोक भगवान शिव की महिमा का वर्णन कर रहा है। इसमें भगवान शिव के विभिन्न गुणों और रूपों की स्तुति की गई है।
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इस पवित्र स्तोत्र में भगवान शिव के पांच पवित्र अक्षरों का महिमा मंडन किया गया है। हर श्लोक में 'न', 'म', 'शि', 'वा', और 'य' अक्षरों का विशेष महत्व है, जो शिव के विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतीक हैं।
इस शो में, हम आपको शिव पंचाक्षर स्तोत्र के श्लोकों का सस्वर पाठ सुनाएंगे, जिससे आप घर बैठे ही भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे। साथ ही, हर श्लोक का अर्थ और उसका आध्यात्मिक महत्व भी समझाया जाएगा, ताकि आप इसे गहराई से अनुभव कर सकें।
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सुनिए शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पहला श्लोक, और करें महादेव को नमस्कार ।
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गुरु हमारे जीवन को दिशा और आधार देते हैं , आध्यात्मिक गुरु से बढ़कर और आगे कुछ नहीं है |
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