Episodios
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सुतीक्ष्ण मुनि के आश्रम में जाते समय राम की वहां के ग्रामीणों से भेंट हुई उन्होंने राम को अपने गांव में आमंत्रित किया।
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विराध का अंत करके राम लक्ष्मण सीता और मुखर सुतीक्ष्ण मुनि के आश्रम को जाने लगे तभी रास्ते में उनका परिचय मुनि धर्मभृत्य से हुआ। किस्से उन्हें उस स्थान की पूरी जानकारी मिली।
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¿Faltan episodios?
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अत्रि ऋषि के आश्रम से दंडक वन की ओर निकलने के बाद रास्ते में राम ,सीता और लक्ष्मण का सामना राक्षस विराध से हुआ ।जिसने सीता को पकड़ लिया था पर राम के पराक्रम के आगे वो अधित देर तक टिक नहीं सका।
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ऋषि शरभंग ने राक्षसों से तंग आकर आत्मदाह कर लिया था वो अंतिम समय तक राम की राह देख रहे थे ।
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राम ने आगे की योजना बनाते हुए ये तय किया कि वह ब्रह्मचारियो को प्रशिक्षित करके आगे दंडक वन की ओर बढ़ जाएंगे।अब पीड़ितों को स्वयं ही राक्ष्सों का सामना करना होगा।
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भारी मन से कुलपति कालकाचार्य विदा हो रहे थे।वे जानते थे वे गलत है पर वह अपना स्वभाव भी जानते थे। उन्होंने राम से ब्रह्मचारियो की रक्षा करने का आग्रह किया और विदा हो गए।
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कालकाचार्या के शिष्यों ने राक्षसों से डर कर भागने के स्थान पर राम के साथ रहकर राक्षसों का सामना करने का निर्णय लिया।
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कुलपति कालकाचार्य ने ब्रह्मचारियों की दुर्दश देखकर ये फैसला लिया की वे सब राम से दूर अपना आश्रम बनाएंगे ताकि राक्षस उन्हें तंग न कर सकें पर ब्रह्मचारियों ने बदला लेने का फैसला किया
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राम के जंगल में आ जाने से राक्षस बहुत कुपित थे। उन्होंने जंगल में आतंक मचाना शुरू कर दिया था। कई ऋषि मुनियों को जान से हाथ धोना पड़ा। इसी क्रम में जंगल में लकड़ी काट रहे ब्रह्मचारियों के एक समूह को राक्षसों ने बंदी बना लिया ओर अपने ठिकाने पर ले गए।
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राम के मित्र चेतन ने भरत के सेना और माताओं के साथ आश्रम आने का समाचार सुनाया जिसे सुनकर लक्ष्मण थोड़ा चिंतित भी हो गए । दूसरी तरफ एक आश्रमवासी अश्विनी जो कि लक्ष्मण से धनुष का प्रशिक्षण ले रहा था राक्षस का शिकार बन गया।
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आश्रम में राम और लक्ष्मण को न पाकर इन्द्र पुत्र जयंत, सीता पर झपट पड़ा।सीता ने बहादुरी से उसका सामना किया।तक तक राम स्वय वहां पहुंच गए और उन्होंने जयंत की एक आँख बेंध दी।दर्द से कराहता वो आश्रम की सीमा से बाहर भाग गया।
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विश्वामित्र के आश्रम में राक्षसो का आतंक फैल चुका था।विश्वमित्र के प्रिय शिष्य नक्षत्र और सुकंठ इन राक्षसो का ग्रास बन चुके थे।कुलपति अब आश्रम वासियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो उठे थे।
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इस पूरे घटनाक्रम से मुखर के अंदर दबी राक्षसों से बदले की भावना जाग उठी।लेकिन राम ने उसे उचित समय आने चोट करने की सलाह दी। उधर सीता और सुमेधा धीरे धीरे सामान्य जीवन की ओर अग्रसर हो गए थे।
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तुंभरण को बन्दी बनाकर उसे सीमा से बाहर कर दिया गया। राक्षसों का बुरा हाल देखकर गांव वालों में हिम्मत आ गई। वो सब झींगुर और सुमेधा के साथ राम के आश्रम में पहुंचे।राम को धन्यवाद दिया और आगे का मोर्चा स्वयं संभालने को तैयार हो गए।
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राक्षसों ने रात में मौका पाकर राम के आश्रम के द्वार पर आग लगा दी पर राम अपने साथियों के साथ सचेत थे।सभी ने मिलकर राक्षसों पर तीर बरसाने शुरू कर दिए। तुंभरण को बंदी बना लिया गया।वो राम के सामने डर से घिघियाने लगा।राम ने तुंभरण को उदघोष के साथ द्वंद युद्ध करने के लिए ललकारा। पर तुंभरण उदघोष का साहस देखकर डर गया। राम ने उदघोष से तुंभरण को आश्रम की सीमा से खदेड़ने का आदेश दिया।
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राक्षसों को कुंभकार के गांव से भागने का समाचार मिल गया था।अब वो राम के आश्रम पर चढ़ाई की योजना बना रहे थे। इधर राम ने भी अपनी पूरी तैयारी कर ली थी। उन्होंने लक्ष्मण और उदघोष को रात में पहरे के लिए नियुक्त किया था।वे दोनों ही कवच धारण कर के अपने धनुष बाण लेकर पेड़ पर पहरा देने लगे।
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सुमेधा के चले जाने से उदघोष बहुत विचलित था, पर राम ने उदघोष को ढांढस बंधाया और उसमे उत्साह का संचार किया। और उसकी शास्त्र शिक्षा शुरू कर दी।उसी शाम वाल्मीकि आश्रम से चेतन आया जो ऋषि भारद्वाज का संदेश लाया था। और इस तरह उसने राम को पिता दशरथ की मृत्यु का दुखद समाचार सुनाया।
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उस रात भोजन के पश्चात उदघोष, सुमेधा और झींगुर आश्रम में ही रुके। पर दूसरे दिन सुबह झींगुर और सुमेधा आश्रम से गायब थे। पहले तो उदघोष को लगा कि राक्षस उन दोनों को बलात उठा कर ले गए पर अतिथिशाला में किसी भी तरह के विरोध के चिन्ह न दिखने के कारण उदघोष ने ये अनुमान लगाया कि दोनों अपनी इच्छा से आश्रम छोड़ कर गांव वापस भाग गए हैं। उदघोष बहुत दुखी और हताश था।
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कुंभकार राम का शस्त्रागार देखकर चकित रह गया। राम ने उसे हिम्मत बंधाई। वो वापस लौटकर सुमेधा और उसके पिता झींगुर को साथ ले आया। और इस तरह कुंभकार अपने प्रति हो रहे अत्याचार के ख़िलाफ़ खड़ा हो गया और शास्त्र शिक्षा सीखने का निश्चय कर लिया।
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मुखर ने बताया कि किस प्रकार राक्षसों ने उसके पूरे परिवार का अंत कर दिया। उसने राम से शस्त्राभ्यास सीखने की प्रार्थना की। जिसे राम ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसी बीच सुमेधा द्वारा भेजा गया कुंभकार भी राम से मिला और अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के विषय में बताया।
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