Episodes
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अभी हाल में गूगल ने चौबीस नई भाषाओं को अपनी मशीनी अनुवाद प्रणाली में जोड़ा, जिनमें देश की आठ भाषाएं- संस्कृत, भोजपुरी, डोगरी, असमिया, मिजो, कोंकणी, मैथिली और मणिपुरी शामिल हैं। जबकि इसमें पहले से बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू जैसी भारतीय भाषाएं थीं।
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थोक और खुदरा महंगाई के आंकड़े भले बताते रहें कि महंगाई घटने लगी है, लेकिन हकीकत में ऐसा दिखता नहीं। उन चीजों के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं जो आमजन की रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ी हैं। आज से दूध और महंगा हो गया। मदर डेयरी और अमूल ने एक बार फिर दूध के दाम दो रुपए प्रति लीटर बढ़ा कर लोगों पर बोझ और बढ़ा दिया। जबकि ये दाम अभी मार्च में भी बढ़ाए गए थे।
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Missing episodes?
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बहुत कम लोग जानते हैं कि इसका असली नाम क्या है! बरसात के मौसम में जब बादल घिर आते हैं, चारों ओर हरियाली फैल जाती है, हर तरफ पानी-पानी होता है, हरी घास की तितलियों का आगमन हो चुका होता है, मन मयूर बन नाचने लगता है, तब ऐसे में अगर अचानक ही खेत-खलिहान, रेतीली जमीन पर एक लाल कीड़ा दिख जाए, तो मन में उत्सुकता पैदा हो जाना स्वाभाविक है।
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कोई भी खेल किसी के लिए मनोरंजन का मामला हो सकता है, लेकिन अगर वह सिलसिलेवार तरीके से कुछ दूसरे लोगों के लिए जानलेवा साबित होने लगे तो इसे खेलने वालों को इसके तौर-तरीकों को लेकर नए सिरे से सोचने की जरूरत है।
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पिछले कुछ समय से कोरोना विषाणु के संक्रमण की रफ्तार धीमी होने की वजह से लोगों में यह धारणा बनने लगी थी कि अब खतरा टल गया है। यही वजह रही कि अपनी ओर से संक्रमण से बचाव के लिए अपनाए जाने वाले उपायों को लेकर लोग लापरवाही या उदासीनता बरतने लगे, जबकि तथ्य यह है कि इस विषाणु के फैलने से रोकने के लिए जो उपाय लागू किए गए थे, उन्हीं के बूते संक्रमण के खतरे को कम किया जा सका था।
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आजादी की अहमियत के बारे में अलग से जिक्र करने की जरूरत शायद नहीं है, क्योंकि दुनिया भर में इसकी भूख में जाने कितने और किस तरह के उतार-चढ़ाव देखने में आए। समय और संदर्भों के मुताबिक इसके स्वरूप बदलते भी रहे हैं। लेकिन हम जिस प्रचलित ‘आजादी’ की बात आज के दौर में करते हैं, वह आखिर क्या है और इसके मायने क्या हैं! यह कहां से शुरू होती है… किसकी आजादी? मेरी राय के मुताबिक, पहले यह जान लेना जरूरी है कि आजादी कोई व्यक्ति में सिमटी चीज नहीं। व्यक्ति दर व्यक्ति से जुड़ कर आजादी के फूलों की लड़ी बनती है।
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चीन और ताइवान के बीच जारी तनाव किसी युद्ध से कम नहीं लग रहा। पिछले हफ्ते अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद इस क्षेत्र में दोनों देशों के युद्धाभ्यास की कवायद बता रही है कि इस आग की लपटें फिलहाल शांत नहीं होने वालीं।
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सपने, सपने ही होते हैं, कभी हकीकत नहीं हुआ करते। पर बिना सपने देखे विकास या सफलता भी नहीं मिला करती। आज जो जहां जितनी उंचाई या शिखर पर दिखाई देते हैं, उनके वहां होने और पहुंचने तक के बहुतेरे खुली आंखों से सपने भी नहीं देख पाते हैं। यानी जो जितना बड़ा सपना देखता है, वह उसे एक दिन हासिल भी कर सकता है। इतिहास भरा पड़ा है, ऐसे उदाहरणों से कि झोपड़ियों से महलों तक की यात्रा करने वाले भी हुए हैं, तो महलों से निकल कर जंगल पहुंचने वाले भी।
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इस बार बर्मिंघम में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के खिलाड़ियों ने एक बार फिर अपना परचम लहरा कर साबित कर दिया कि दुनिया में वे किसी से कहीं कम नहीं हैं। बाईस स्वर्ण पदकों के साथ भारत चौथे स्थान पर रहा। खेल के आखिरी दिन भी भारत ने स्वर्ण पदक जीत नया इतिहास रचा। बैडमिंटन, भारोत्तोलन, मुक्केबाजी और कुश्ती जैसे खेल में उपलब्धियां दमदार रहीं।
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राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की बढ़ती पैठ को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। हर पार्टी जब सत्ता से बाहर होती है, तो ऐसे तत्त्वों को सत्ता से बाहर करने का बढ़-चढ़ कर दावा करती है। मगर हकीकत यह है कि हर चुनाव के बाद आपराधिक छवि के प्रतिनिधियों की संख्या कुछ बढ़ी हुई ही दर्ज होती है।
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पैसे की तीन ही गतियां संभव हैं: उसे खर्च कर दिया जाए, किसी को दे दिया जाए या फिर उसे यों ही नष्ट होने के लिए कहीं छोड़ दिया जाए। कृपण लोगों को रास्ता दिखाने के लिए ईशावास्योपनिषद में एक सुंदर श्लोक मिलता है: ‘ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत। तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृध: कस्यस्विद्धनम्॥’ जिसका अर्थ है कि इस दुनिया की सारी चल-अचल संपत्ति ईश्वर का ही प्रकटीकरण है। इसका उपयोग खर्च करके, इसका त्याग करके ही किया जा सकता है।
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मानसून अब अपनी पूरी रौ में है। सावन जाने और भादों आने को है। देश भर में वर्षा की अमृत बूंदें बरस रही हैं। सही मायने में यही समय है इन अमृत बूंदों को सहेजने का। अभी देश की सभी बड़ी-छोटी नदियां वर्षा जल से भरी-पूरी हैं। फिर जल से ही हमारा आज है और कल भी। पृथ्वी पर जल स्वयं अपने आप में ‘अमृत’ है। जल के बिना हम ‘जीवन’ की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
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किसी भी देश का लोकतंत्र तभी मजबूत बना रह सकता है जब वहां होने वाले चुनाव निष्पक्ष व स्वतंत्र हो और राजनीतिक दलों की ओर से लोगों का मत हासिल करने के लिए लोभ-लाभ का सहारा न लिया जाता हो। लेकिन हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव, अमूमन सभी दलों की ओर से अपने उम्मीदवारों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए मतदाताओं के सामने कई तरह के ऐसे दावे और वादे किए जाते हैं, जो कभी पूरे नहीं होते
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हमारा जीवन डर, उम्मीद और लालच के इर्द-गिर्द घूमता है। चाहे हम गलत काम करें या ठीक, हर काम इसी त्रिकोण से संचालित होता है। इनके अभाव में पढे-लिखे और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी अज्ञानी साबित होते हैं और धोखा खा जाते हैं। डर के खौफ में अक्सर लोग घबराकर सही या गलत फैसले ले लेते हैं। अगर मौत का डर हो तो आदमी घबराकर ऊपर से नीचे कूद भी जाता है, भले ही इस कोशिश में उसकी जान क्यों न चली जाए! ऐसी स्थिति में मन में तो बचने का ही भाव होगा। यानी मौत से बचने की कोशिश में भी आदमी मर सकता है।
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संबंधों और रिश्ते-नातों की दुनिया बड़ी विचित्र है। यहां अपनापन कम और छद्म ज्यादा है। रिश्तों की मधुरता के संबंध में तो यह प्रचलित भी है कि ‘स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती/ सुर नर मुनि सबकी यह रीती।’ आप अभी जो भी हैं, पर संबंधों की दुनिया इस बात से संचालित होती है कि आप इस दिखने के अलावा ‘और’ क्या हैं? आप ‘और’ क्या हैं, इससे जो भाव बनता है उसी से संबंधों का संसार खड़ा होता है।
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