Episódios
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22 अप्रैल, पहलगाम. बर्फीली वादियाँ, शांत घाटियाँ — लेकिन उस दिन वहाँ सिर्फ़ चीखें थीं.बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले में 28 लोग मारे गए — 24 पर्यटक, 2 स्थानीय, 2 विदेशी. 20 से ज़्यादा लोग घायल हुए. इस हमले की ज़िम्मेदारी ली दी रेजिस्टेंस फ्रंट ने — जिसे लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा माना जाता है. प्रधानमंत्री ने विदेश दौरा बीच में छोड़ा, गृहमंत्री मौके पर पहुँचे. चार साल में सात गुना बढ़े टूरिज़्म पर अब ब्रेक लग गया है. कश्मीर जितना हसीन है, उतना ही संवेदनशील भी. शांति यहाँ इतनी मुश्किल क्यों है? इन्हीं सवालों पर बात करने के लिए हमारे साथ हैं डॉ. अभिनव पांड्या — कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए, Usanas Foundation के संस्थापक, और सुरक्षा विषयों पर तीन किताबों के लेखक.
Disclaimer: इस पॉडकास्ट में व्यक्त किए गए विचार एक्सपर्ट के निजी हैं. -
अमेरिका-चीन के बीच टैरिफ़ वॉर शुरू हो गया. ट्रंप का सपना था – “Make America Great Again”, यानी अमेरिका फिर से मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस बने. उन्हें खल रहा था कि चीन से तीन गुना ज़्यादा सामान मंगवाकर अमेरिका व्यापार घाटा झेल रहा है. उनके लिए ये सिर्फ आर्थिक नहीं, “इगो” का भी मामला था. इसलिए 2 अप्रैल को ट्रंप ने 90 देशों के सामान पर भारी टैक्स लगा दिए और इस दिन को Liberation Day कहा – विदेशी माल से आज़ादी का दिन. चाहे चीन के मोबाइल पार्ट्स हों, यूरोप की कारें, भारत की दवाइयाँ या मैक्सिको की मशीनें – सब महंगे हो गए हैं. लक्ष्य है: विदेशी कंपनियाँ हटें, अमेरिकी कंपनियाँ बढ़ें. लेकिन सवाल ये है – क्या अमेरिकी लोग महंगे लोकल सामान को चुनेंगे? क्या अमेरिका फिर से उत्पादन में अग्रणी बन पाएगा? इन्हीं सवालों पर बात करेंगे अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रकाश के रे से.
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Estão a faltar episódios?
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भारत के 28वें सेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे हमारे साथ हैं, उनका सफर एक कैडेट से लेकर सेना प्रमुख बनने तक और अब लेखक के रूप में एक नई भूमिका में प्रवेश करना, कई ऐतिहासिक पड़ावों से होकर गुज़रा है. इस एपिसोड में हमने बात की गलवान संकट, ऑपरेशन स्नो लेपर्ड, LAC पर चीन से तनाव, अग्निवीर योजना, श्रीलंका में भारत की रणनीति और पाकिस्तान की सेना से हमारी तुलना पर. साथ ही चर्चा की उनकी नई किताब "The Cantonment Conspiracy", जो एक रोमांचक मिलिट्री थ्रिलर है.
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भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं—विभाजन से लेकर युद्धों और कारगिल तक और उसके बाद भी. 'पढ़ाकू नितिन' में हमारे साथ हैं पूर्व राजनयिक शरत सभरवाल, जिन्होंने पाकिस्तान में भारत के डिप्टी और फिर हाई कमिश्नर के रूप में काम किया. वे हमें बताते हैं कि भारत-पाक संबंध क्यों सामान्य नहीं हो सकते, कैसे उन्होंने पाकिस्तान के जासूसों को चकमा दिया और बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग कैसे पाकिस्तान के लिए चुनौती बनती जा रही है. हम बलूच आंदोलन के इतिहास, नवाब बुगती की हत्या और भारत की भूमिका पर भी चर्चा करते हैं, सुनिए ये बातचीत जो पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति, जासूसी तंत्र और अलगाववाद को गहराई से समझने में मदद करेगी.
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12वीं सदी में मोहम्मद गोरी ने जब भारत में सत्ता स्थापित की, तो वक्फ़ की परंपरा भी शुरू हुई. आज वक्फ़ सिर्फ़ एक धार्मिक संस्था नहीं, बल्कि भारत की तीसरी सबसे बड़ी ज़मीन की मालिक है — करीब 9.4 लाख एकड़. अब वक्फ़ क़ानून में बदलाव हो चुका है — Waqf (Amendment) Act, 2025 पास हो गया है और इसके साथ कई सवाल भी उठ रहे हैं. क्या ये संशोधन धार्मिक आज़ादी पर असर डालेगा? क्या इससे मुसलमानों की ज़मीनें ख़तरे में पड़ेंगी? इन्हीं सवालों पर बात करने हमारे साथ हैं सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट संजय घोष.
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बलूचिस्तान की आज़ादी की गूंज दुनिया भर में सुनाई दे रही है और ऐसी ही एक बुलंद आवाज़ हैं मुमताज़ बलोच. तुरबत से ताल्लुक रखने वाले मुमताज़ फिलहाल जर्मनी में निर्वासन का जीवन बिता रहे हैं. छात्र जीवन से ही आज़ादी की तहरीक से जुड़े, पहले बलूच स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन फ्रीडम के सदस्य रहे और अब फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट का हिस्सा हैं.
इस पॉडकास्ट में हमने मुमताज़ से पूछा – ईरान से आज़ादी की मांग क्यों उतनी ज़ोर से नहीं उठती जितनी पाकिस्तान से? बाग़ियों को हथियार कहां से मिलते हैं? उन्हें पाकिस्तान से भागने की नौबत क्यों आई? और बलूचिस्तान को दुनिया से कैसी मदद की उम्मीद है? -
पाकिस्तान को बने अभी सौ साल भी नहीं हुए, लेकिन बलूचिस्तान का इतिहास हज़ारों साल पुराना है. आज की हकीकत यह है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा है, लेकिन 1947 से ही वहां के लोग आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं. बलूचिस्तान नेशनल मूवमेंट इसी संघर्ष का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य हर हाल में एक स्वतंत्र बलूचिस्तान है. इस संगठन के सीनियर ज्वाइंट सेक्रेटरी, कमाल बलोच, जो सुरक्षा कारणों से अपनी लोकेशन उजागर नहीं कर सकते उन्होंने पढ़ाकू नितिन से वर्चुअल बातचीत में बताया कि वे बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग क्यों मानते हैं और जिन्ना ने कैसे उन्हें धोखा दिया. इस एपिसोड में हमने जाना कि इस आंदोलन की फंडिंग कैसे होती है, चीन की मौजूदगी ने इसे कितना मुश्किल बना दिया है, और क्यों कमाल बलोच, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस को अपना हीरो मानते हैं.
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इस बार हमने बात की राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा से—जिनकी आवाज़ संसद में गूंजती है तो लोग ध्यान से सुनते हैं और सोशल मीडिया पर लाखों लोग देखते हैं. उनके घर पहुंचे तो राजनीति पर चर्चा की उम्मीद थी लेकिन सैकड़ों किताबों और फिल्मी पोस्टरों से घिरे कमरे ने हमें चौंका दिया। बातचीत राजनीति, सिनेमा और किताबों के बीच घूमती रही. मज़ाक और हंसी के बीच हमने तीखे सवाल भी पूछे—गरीबों से जुड़े मुद्दों पर जनता क्यों नहीं जुड़ती, राजनीतिक दलों में लोकतंत्र क्यों नहीं है और संसद में समोसे कितने के मिलते हैं?
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हमारी खास बातचीत हुई इतिहासकार विक्रम संपत से, जिन्होंने Tipu Sultan: The Saga of Mysore's Interregnum लिखी है. यह सिर्फ़ टीपू सुल्तान नहीं, बल्कि उनके पिता हैदर अली की कहानी भी बताती है. हमने इस पर दो एपिसोड रिकॉर्ड किए और यह दूसरा भाग है. पहले भाग में हैदर अली की चर्चा हुई थी, अब पूरी बातचीत टीपू पर केंद्रित होगी.
इस एपिसोड में हमने विक्रम से पूछा—टीपू ने फ्रांस को क्यों चुना? वे मुग़लों से तमगा क्यों चाहते थे? 'राम नाम' की अंगूठी का सच क्या है? और एक समुदाय दीवाली क्यों नहीं मनाता?
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टीपू सुल्तान: हीरो या खलनायक?
टीपू सुल्तान का म्यूज़िकल टाइगर टॉय क्या खेल था या चेतावनी?
वह वीर योद्धा था या निर्दयी शासक?
चार युद्ध, ब्रिटिशों से संघर्ष, और 1799 में वीरगति. लेकिन कोडागु के लोग उसे अत्याचारी क्यों मानते हैं? क्या उसने जबरन धर्म परिवर्तन करवाया?
इस पर चर्चा करेंगे इतिहासकार डॉ. विक्रम संपत, जिनकी किताब ‘टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर’ चर्चा में रही, देखिए पूरा एपिसोड ‘पढ़ाकू नितिन’ में.
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अमेरिका आज भी दुनिया की अकेली महाशक्ति है और डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद वहां बड़े फैसले लिए जा रहे हैं—इमिग्रेंट्स पर सख्त कदम, रूस से बातचीत, और भी बहुत कुछ। इन्हीं मुद्दों पर चर्चा के लिए हमारे साथ हैं प्रोफेसर मोहसिन रज़ा खान, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सुरक्षा नीति के विशेषज्ञ हैं. वह ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और वॉशिंगटन डीसी में इंडिया रिसर्च ग्रुप के सीनियर फेलो हैं. उन्होंने अमेरिका और यूरोप में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, कूटनीति और वैश्विक राजनीति पर गहन शोध किया है. पढ़ाकू नितिन में बात होगी ट्रंप की नई नीतियों और उनके वैश्विक प्रभावों पर 'नितिन ठाकुर' के साथ.
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भाषा सिर्फ़ शब्दों का सेट नहीं, बल्कि एक जीती-जागती दुनिया होती है, जो समय के साथ विकसित होती रहती है. मशहूर लेखक सआदत हसन मंटो ने कहा था कि ज़बान बनाई नहीं जाती, वो ख़ुद बनती है. इन्हीं पहलुओं पर बात करने के लिए आज हमारे साथ हैं लिंग्विस्ट, लेखक और शोधकर्ता पेगी मोहन, अपनी किताबों Wanderers, Kings, Merchants और Father Tongue, Motherland में उन्होंने दिखाया है कि भारतीय भाषाएँ सिर्फ़ संस्कृत या फ़ारसी का विस्तार नहीं, बल्कि एक गहरे और मिश्रित भाषा तंत्र का हिस्सा हैं. उनसे जानते हैं—भाषाओं का असली DNA क्या है? माइग्रेशन और जेंडर का भाषा निर्माण पर क्या असर होता है? क्या हिंदी, बंगाली, तमिल जैसी भाषाएँ किसी प्राचीन ज़बान का नया रूप हैं? और भाषा कब ‘मदर टंग’ बनती है, कब इसमें गालियां जुड़ जाती हैं, सुनिए 'पढ़ाकू नितिन' में नितिन ठाकुर के साथ.
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हर चुनाव में नेता अपना सोचते हैं, लेकिन वोटर सिर्फ़ अपना फ़ायदा देखता है. दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे चौंकाने वाले रहे—27 साल बाद बीजेपी की वापसी, AAP विपक्ष में, और कांग्रेस स्थिर. अब सवाल ये है कि बीजेपी बिना CM फेस के कैसे जीती? AAP के वोटर्स क्यों खिसक गए? केजरीवाल की कौन सी चाल फेल हुई? और बीजेपी के लिए आगे का रास्ता कितना मुश्किल? इन्हीं सवालों पर चर्चा के लिए हमारे साथ हैं सीनियर जर्नलिस्ट राजदीप सरदेसाई. ‘पढ़ाकू नितिन’ में आज होगी गहरी पड़ताल!
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Video Episode- https://youtu.be/AjcfY2ZD8Us
जादू को हमने कई रूपों में महसूस किया है—लता मंगेशकर की आवाज़, सचिन तेंदुलकर के कवर ड्राइव, या निर्मल वर्मा की लेखनी में. आज हमारे साथ एक ऐसे ही ‘जादूगर’ हैं, जो एक हिप्नोथैरेपिस्ट भी हैं. ये लोगों सिर्फ़ लोगों को हैरान करते हैं, बल्कि उनकी भावनात्मक चोटें भी भरते हैं और पर्चा बनाने वाले ‘दिव्य आत्माओं’ की सच्चाई उजागर करते हैं. इस एपिसोड में हमने रविंद्र से जाना कि सम्मोहन को लेकर कौन-कौन सी ग़लतफ़हमियाँ हैं, किसे सम्मोहित किया जा सकता है और किसे नहीं, साथ ही ये थैरेपी की तरह कैसे काम करता है. खास बात ये है कि पहली बार पढ़ाकू नितिन में लाइव ऑडियंस भी इसका अनुभव ले रही है!
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पिछले एपिसोड में डॉ. मिनाक्षी जैन ने बताया कि सती प्रथा, बाबरी मस्जिद के नीचे मिले प्रमाण और हिंदवी भाषा को कैसे बदला गया. इस एपिसोड में वे गुजरात के व्यापारी की कहानी बताती हैं, जिसने मंदिर पर हमले के विरोध में शाहजहाँ से टक्कर ली और उन इतिहासकारों का ज़िक्र करती हैं जिन्होंने भारतीय इतिहास को गलत दिशा दी. साथ ही, हमने पूछा कि क्या औरंगज़ेब ने मंदिर निर्माण के लिए धन दिया था, धार्मिक विवादों का समाधान क्या है, और NCERT की किताबों में उन्होंने क्या बदला गया अगर पिछला हिस्सा नहीं सुना, तो ज़रूर सुनें.
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जब पढ़ाकू नितिन पॉडकास्ट की शुरुआत हुई, हमारा उद्देश्य था इतिहास जैसे जटिल विषयों को सरल और निष्पक्ष रूप से आप तक पहुंचाना. इतिहास की खूबी यह है कि वह समय के साथ बदलता रहता है—नई जानकारियां और बदलते नज़रिए पुरानी धारणाओं को चुनौती देते हैं. आज के एपिसोड में हमारे साथ हैं जानी-मानी इतिहासकार डॉ. मीनाक्षी जैन. राम, अयोध्या, सती, और कृष्ण जैसे विषयों पर उनकी साक्ष्य-आधारित किताबों ने इतिहास की नई समझ दी है. 2020 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. हमने उनसे सवाल किए—सती प्रथा का सच क्या है? मंदिर तोड़ने की शुरुआत कब हुई? क्या बौद्ध स्तूपों को तोड़कर मंदिर बनाए गए? और उर्दू का विकास कैसे हुआ? इन सवालों के जवाब जानने के लिए सुनिए पूरा एपिसोड
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भारत में बहुत कम लोग हैं जिनके नाम के साथ IIT, IPS, और बेस्टसेलर लेखक जैसी उपलब्धियां जुड़ती हैं और उनमें से एक हैं आलोक लाल. 35 साल पुलिस फोर्स को सेवा देने वाले, दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित और True Crime जॉनर में बेस्टसेलर The Barabanki Narcos के लेखक. उनकी किताबें केवल घटनाओं का विवरण नहीं, बल्कि एक कला प्रेमी के दिल से लिखी कहानियां हैं. सेवा के दौरान पेंटिंग प्रदर्शनियां लगाने वाले आलोक लाल ने यूपी के बाराबंकी से अफीम के धंधे का सफाया किया, कई बड़े केस सुलझाए और जानलेवा हमलों का सामना किया. पढ़ाकू नितिन में उन्होंने बताया कि क्यों मुलायम सिंह यादव ने उनके लिए विधायकों को डांटा और किस गिल्ट ने उन्हें अब तक नहीं छोड़ा.
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नए साल की देरी से ही सही, शुभकामनाएं! 2025 में भी इतिहास और मिथकों के बीच की खाई को समझना उतना ही मुश्किल है. इसी पर चर्चा के लिए हमारे आज के एपिसोड में हैं डॉ. रुचिका शर्मा, जो मध्यकालीन भारतीय इतिहास की विशेषज्ञ हैं. JNU से PhD, कई भाषाओं की जानकार और अपने अनोखे अंदाज़ में इतिहास पर बात करने वाली रुचिका से हमने धार्मिक स्थलों के विवाद, मंदिरों के विध्वंस, सोमनाथ मंदिर, और अकबर से जुड़े मिथकों पर चर्चा की, आराम से सुनें और इतिहास की परतें खोलें!
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बीते साल हमने कई विषयों पर चर्चा की, मशहूर लेखकों, कलाकारों, राजनयिकों और विशेषज्ञों से बातचीत की. इस विशेष एपिसोड में हमने अलग-अलग जॉनर के उन हिस्सों को समेटने की कोशिश की है, जिन्हें आपने सबसे ज़्यादा पसंद किया और सराहा. हमने शेर सिंह राणा से तिहाड़ में अफ़जल गुरू के साथ बिताए उनके अनुभवों के बारे में पूछा. मानव कौल से जाना कि उन्होंने एक किताब के कवर के लिए कपड़े क्यों उतार दिए. कृष अशोक ने वेज, नॉन वेज और वीगन खानों के बीच के फ़र्क को स्पष्ट किया. दीपक वाधवा ने इन्वेस्टमेंट के फंडे दिए. अक्षत गुप्ता ने हमें नागाओं की अनोखी दुनिया से परिचित कराया. सुनिए पढ़ाकू नितिन का ये स्पेशल एपिसोड.
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सोना इतना क़ीमती क्यों है, सोने को समृद्धि से जोड़कर क्यों देखा जाता है, भारत कितना सोना आयात करता है और सोना खरीदने को लेकर लोग इतने उतावले क्यों रहते हैं, सोना या उससे बने गहने ख़रीद कर रखना क्या घाटे का सौदा है, धर्मों में सोने को इतनी अहमियत क्यों, सोना इतना महंगा क्यों है, साउथ अफ्रीका में सबसे ज्यादा सोने की खदानें हैं, लेकिन क्या वो सोना भी अमूल्य हीरे की तरह लैब में बनाया जा सकता है, मिडिल ईस्ट में सोने का क्रेज़ इतना क्यों है, सोने का कहां-कहां इस्तेमाल हो रहा है, सोने के दाम कैसे तय होते हैं, विदेशों से सोना देश में कैसे आता है, बाजार तक कैसे पहुंचता है, कैरेट में इसकी शुद्धता कैसे तय होती है, इन्वेस्टमेंट के लिहाज से सोना कैसे खरीदें और डिजिटल गोल्ड क्या बला है? समझिए सोने का इतिहास, भूगोल और इकोनॉमिक्स समझिए 'पढ़ाकू नितिन' के इस एपिसोड में MyGold के Founder अमोल बंसल से.
प्रड्यूसर: कुंदन कुमार
साउंड मिक्सिंग: सचिन द्विवेदी - Mostrar mais