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उस से सालों से नहीं मिला लेकिन, वो कभी भी मेरे सोफे पर आकर, या गुज़रती कार में ही, या कभी भी ख़्वाब में ही, आ के अपनी महक मुझमें छोङ जाता है ।।
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कैकेयी
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राजतिलक होने को था,
अवधों को नृप मिलने को था।
चहुँ ओर राम चहुँ ओर नाम
सुरभित उल्लासित सारा ग्राम।
मंथरा नामक कुबड़ी दासी,
अंतःपुर की जो थी वासी,
सुन कर जैसे वायु हो ली,
नतमस्तक हो कर वो बोली। -
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दो लोगों के मिलने और बिछङने की कहानी ।।