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Hanumat Mantra Anushthan हनुमत् मन्त्र अनुष्ठान (प्रस्तुत विधान के प्रत्येक मन्त्र के ११००० ‘जप‘ एवं दशांश ‘हवन’ से सिद्धि होती है। हनुमान जी के मन्दिर में, ‘रुद्राक्ष’ की माला से ब्रह्मचर्य-पूर्वक ‘जप करें। कठिन-से-कठिन कार्य इन मन्त्रों की सिद्धि से सुचारु रुप से होते हैं।)
★ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वायु-सुताय, अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, अखण्ड-ब्रह्मचर्य-व्रत-पालन-तत्पराय, धवली-कृत-जगत्-त्रितयाय, ज्वलदग्नि-सूर्य-कोटि-समप्रभाय, प्रकट-पराक्रमाय, आक्रान्त-दिग्-मण्डलाय, यशोवितानाय, यशोऽलंकृताय, शोभिताननाय, महा-सामर्थ्याय, महा-तेज-पुञ्जः-विराजमानाय, श्रीराम-भक्ति-तत्पराय, श्रीराम-लक्ष्मणानन्द-कारणाय, कवि-सैन्य-प्राकाराय, सुग्रीव-सख्य-कारणाय, सुग्रीव-साहाय्य-कारणाय, ब्रह्मास्त्र-ब्रह्म-शक्ति-ग्रसनाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-निवारणाय, शल्य-विशल्यौषधि-समानयनाय, बालोदित-भानु-मण्डल-ग्रसनाय, अक्षकुमार-छेदनाय, वन-रक्षाकर-समूह-विभञ्जनाय, द्रोण-पर्वतोत्पाटनाय, स्वामि-वचन-सम्पादितार्जुन, संयुग-संग्रामाय, गम्भीर-शब्दोदयाय, दक्षिणाशा-मार्तण्डाय, मेरु-पर्वत-पीठिकार्चनाय, दावानल-कालाग्नि-रुद्राय, समुद्र-लंघनाय, सीताऽऽश्वासनाय, सीता-रक्षकाय, राक्षसी-संघ-विदारणाय, अशोक-वन-विदारणाय, लंका-पुरी-दहनाय, दश-ग्रीव-शिरः-कृन्त्तकाय, कुम्भकर्णादि-वध-कारणाय, बालि-निर्वहण-कारणाय, मेघनाद-होम-विध्वंसनाय, इन्द्रजित-वध-कारणाय, सर्व-शास्त्र-पारंगताय, सर्व-ग्रह-विनाशकाय, सर्व-ज्वर-हराय, सर्व-भय-निवारणाय, सर्व-कष्ट-निवारणाय, सर्वापत्ति-निवारणाय, सर्व-दुष्टादि-निबर्हणाय, सर्व-शत्रुच्छेदनाय, भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-ध्वंसकाय, सर्व-कार्य-साधकाय, प्राणि-मात्र-रक्षकाय, राम-दूताय-स्वाहा।।
२. ॐ नमो हनुमते, रुद्रावताराय, विश्व-रुपाय, अमित-विक्रमाय, प्रकट-पराक्रमाय, महा-बलाय, सूर्य-कोटि-समप्रभाय, राम-दूताय-स्वाहा।।
३. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय राम-सेवकाय, राम-भक्ति-तत्पराय, राम-हृदयाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-निवारणाय, लक्ष्मण-रक्षकाय, दुष्ट-निबर्हणाय, राम-दूताय स्वाहा।।
४. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्व-शत्रु-संहारणाय, सर्व-रोग-हराय, सर्व-वशीकरणाय, राम-दूताय स्वाहा।।
५. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, आध्यात्मिकाधि-दैविकाधि-भौतिक-ताप-त्रय-निवारणाय, राम-दूताय स्वाहा।।
६. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, देव-दानवर्षि-मुनि-वरदाय, राम-दूताय स्वाहा।।
७. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, भक्त-जन-मनः-कल्पना-कल्पद्रुमाय, दुष्ट-मनोरथ-स्तम्भनाय, प्रभञ्जन-प्राण-प्रियाय, महा-बल-पराक्रमाय, महा-विपत्ति-निवारणाय, पुत्र-पौत्र-धन-धान्यादि-विविध-सम्पत्-प्रदाय, राम-दूताय स्वाहा।।
८. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वज्र-देहाय, वज्र-नखाय, वज्र-मुखाय, वज्र-रोम्णे, वज्र-नेत्राय, वज्र-दन्ताय, वज्र-कराय, वज्र-भक्ताय, राम-दूताय स्वाहा।।
९. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पर-यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र-त्राटक-नाशकाय, सर्व-ज्वरच्छेदकाय, सर्व-व्याधि-निकृन्त्तकाय, सर्व-भय-प्रशमनाय, सर्व-दुष्ट-मुख-स्तम्भनाय, सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रदाय, राम-दूताय स्वाहा।।
१०. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, देव-दानव-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-दुष्ट-ग्रह-बन्धनाय, राम-दूताय स्वाहा।।
११. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पँच-वदनाय पूर्व-मुखे सकल-शत्रु-संहारकाय, राम-दूताय स्वाहा।।
१२. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च-वदनाय दक्षिण-मुखे कराल-वदनाय, नारसिंहाय, सकल-भूत-प्रेत-दमनाय, राम-दूताय स्वाहा।।
१३. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च वदनाय पश्चिम-मुखे गरुडाय, सकल-विष-निवारणाय, राम-दूताय स्वाहा।।
१४. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च वदनाय उत्तर मुखे आदि-वराहाय, सकल-सम्पत्-कराय, राम-दूताय स्वाहा।।
१५. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, उर्ध्व-मुखे, हय-ग्रीवाय, सकल-जन-वशीकरणाय, राम-दूताय स्वाहा।।
१६. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, सर्व-ग्रहान, भूत-भविष्य-वर्त्तमानान्- समीप-स्थान् सर्व-काल-दुष्ट-बुद्धीनुच्चाटयोच्चाटय पर-बलानि क्षोभय-क्षोभय, मम सर्व-कार्याणि साधय-साधय स्वाहा।।
१७. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पर-कृत-यन्त्र-मन्त्र-पराहंकार-भूत-प्रेत-पिशाच- पर-दृष्टि-सर्व-विध्न-तर्जन-चेटक-विद्या-सर्व-ग्रह-भयं निवारय निवारय स्वाहा।।
१८. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, डाकिनी-शाकिनी-ब्रह्म-राक्षस-कुल-पिशाचोरु- भयं निवारय निवारय स्वाहा।।
१९. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, भूत-ज्वर-प्रेत-ज्वर-चातुर्थिक-ज्वर-विष्णु-ज्वर-महेश-ज्वर निवारय निवारय स्वाहा।।
२०. ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, अक्षि-शूल-पक्ष-शूल-शिरोऽभ्यन्तर-शूल-पित्त-शूल-ब्रह्म-राक्षस-शूल-पिशाच-कुलच्छेदनं निवारय निवारय स्वाहा।।
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Siddh Beej Mantra सिद्ध बीजमंत्र •
माँ शक्ति की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिये नवरात्रि में इस सिद्ध बीजमंत्र की साधना जरूर करें :-
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|| ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ह्रः ऐं नमः ||
• इस बीजमंत्र की साधना सभी राशि के जातक कर सकते हैं। कुश का आसन,रक्त चन्दन की माला, मिठाई का भोग उत्तर दिशा की ओर मुख करके, देशी गाय के घी का अखंड दीपक जलाकर, ब्रह्मचर्य तथा पूर्ण शुद्धि के साथ नवरात्रि के 9 दिनों में 12500 जप अर्थात 125 माला पूर्ण करने से इष्टकार्य की सिद्धि होती है । तत्पश्चात् उपरोक्त बीजमंत्र की प्रतिदिन 1 माला का जप अवश्य करें ।
आचार, विचार, व्यवहार, खान-पान शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखे!
महाकाल सब का कल्याण करें -
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Chandrashekhar Ashtakam चन्द्रशेखराष्टकम् ◆
चन्द्रशेखराष्टकम्
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहिमाम् ।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥
रत्नसानु शरासनं रजताद्रि शृङ्ग निकेतनं
शिञ्जिनीकृत पन्नगेश्वर मच्युतानल सायकम् ।
क्षिप्रदग्द पुरत्रयं त्रिदशालयै रभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 1 ॥
मत्तवारण मुख्यचर्म कृतोत्तरीय मनोहरं
पङ्कजासन पद्मलोचन पूजिताङ्घ्रि सरोरुहम् ।
देव सिन्धु तरङ्ग श्रीकर सिक्त शुभ्र जटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 2 ॥
कुण्डलीकृत कुण्डलीश्वर कुण्डलं वृषवाहनं
नारदादि मुनीश्वर स्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् ।
अन्धकान्तक माश्रितामर पादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 3 ॥
पञ्चपादप पुष्पगन्ध पदाम्बुज द्वयशोभितं
फाललोचन जातपावक दग्ध मन्मध विग्रहम् ।
भस्मदिग्द कलेबरं भवनाशनं भव मव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 4 ॥
यक्ष राजसखं भगाक्ष हरं भुजङ्ग विभूषणम्
शैलराज सुता परिष्कृत चारुवाम कलेबरम् ।
क्षेल नीलगलं परश्वध धारिणं मृगधारिणम्
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 5 ॥
भेषजं भवरोगिणा मखिलापदा मपहारिणं
दक्षयज्ञ विनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् ।
भुक्ति मुक्ति फलप्रदं सकलाघ सङ्घ निबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 6 ॥
विश्वसृष्टि विधायकं पुनरेवपालन तत्परं
संहरं तमपि प्रपञ्च मशेषलोक निवासिनम् ।
क्रीडयन्त महर्निशं गणनाथ यूथ समन्वितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 7 ॥
भक्तवत्सल मर्चितं निधिमक्षयं हरिदम्बरं
सर्वभूत पतिं परात्पर मप्रमेय मनुत्तमम् ।
सोमवारिन भोहुताशन सोम पाद्यखिलाकृतिं
चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्ति मयत्नतः ॥ 8 ॥
फलशृति
विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमपिप्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम् ।
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 9 ॥
मृत्युभीत मृकण्डुसूनुकृतस्तवं शिवसन्निधौ
यत्र कुत्र च यः पठेन्न हि तस्य मृत्युभयं भवेत् ।
पूर्णमायुररोगतामखिलार्थसम्पदमादरं
चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्तिमयत्नतः ॥ 10 ॥
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Exam Success Mantra परीक्षा सफलता मन्त्र ■
मां सरस्वती विद्या की अधिष्ठातृ देवी है। जब भी कोई परीक्षा देने जाए तब इस मंत्र को सच्चे मन से मां सरस्वती का स्मरण कर 7 बार पढ़ें। अगर समयाभाव हो तो मात्र एक बार भी घी का दीपक जलाकर पढ़ा जा सकता है।
सरस्वती पूजन के समय यह श्लोक पढ़ने से मां सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त होती है। ★
मां सरस्वती का श्लोक : ★
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् ।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम् ।।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभिः ।
वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै: ।। ★ -
Shiv Kshama Prarthana Stotra शिव क्षमा प्रार्थना स्तोत्र ★
मृत्युञ्जय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्
जन्म मृत्युजरारोगैः पीड़ितं कर्म बन्धनैः ||१||
मन्त्रेणाक्षर हीनेन पुष्पेण विफलेन च
पूजितोसि महादेव तत्सर्वं क्षम्यतां मम ||२||
करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवननयंजं वा मानसं वापराधम् ||३||
विहितमविहितं वा सर्वमेतत क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेवशम्भो ||४||
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व महेश्वरः ||५||
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम् । तस्मात्कारूणयभावेन रक्षस्व पार्वतीनाथः ||६||
गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्रयमेव च
आगता सुख सम्पतिः पुण्याच्च तव दर्शनात् ।। ७ ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर !
यत्पूजितम् मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे ॥८॥
हरहर महादेव यदक्षरंपदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद शिवशंकर ||९||• -
Jain Suprabhat Stotra जैन सुप्रभात स्तोत्र ★
यत्स्वर्गावतरोत्सवे यदभवज्जन्माभिषेकोत्सवे,
यद्दीक्षाग्रहणोत्सवे यदखिल-ज्ञानप्रकाशोत्सवे ।
यन्निर्वाणगमोत्सवे जिनपते: पूजाद्भुतं तद्भवै:,
सङ्गीतस्तुतिमङ्गलै: प्रसरतां मे सुप्रभातोत्सव:॥१॥
श्रीमन्नतामर-किरीटमणिप्रभाभि-,
रालीढपादयुग- दुर्द्धरकर्मदूर,
श्रीनाभिनन्दन ! जिनाजित ! शम्भवाख्य,
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥२॥
छत्रत्रय प्रचल चामर- वीज्यमान,
देवाभिनन्दनमुने! सुमते! जिनेन्द्र!
पद्मप्रभा रुणमणि-द्युतिभासुराङ्ग
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥३॥
अर्हन्! सुपाश्र्व! कदली दलवर्णगात्र,
प्रालेयतार गिरि मौक्तिक वर्णगौर !
चन्द्रप्रभ! स्फटिक पाण्डुर पुष्पदन्त!
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥४॥
सन्तप्त काञ्चनरुचे जिन! शीतलाख्य!
श्रेयान विनष्ट दुरिताष्टकलङ्क पङ्क
बन्धूक बन्धुररुचे! जिन! वासुपूज्य!
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥५॥
उद्दण्ड दर्पक-रिपो विमला मलाङ्ग!
स्थेमन्ननन्त-जिदनन्त सुखाम्बुराशे
दुष्कर्म कल्मष विवर्जित-धर्मनाथ!
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥६॥
देवामरी-कुसुम सन्निभ-शान्तिनाथ!
कुन्थो! दयागुण विभूषण भूषिताङ्ग।
देवाधिदेव!भगवन्नरतीर्थ नाथ,
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥७॥
यन्मोह मल्लमद भञ्जन-मल्लिनाथ!
क्षेमङ्करा वितथ शासन -सुव्रताख्य!
सत्सम्पदा प्रशमितो नमि नामधेय
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥८॥
तापिच्छ गुच्छ रुचिरोज्ज्वल-नेमिनाथ!
घोरोपसर्ग विजयिन् जिन! पार्श्वनाथ!
स्याद्वाद सूक्ति मणि दर्पण! वर्धमान!
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥९॥
प्रालेय नील - हरि तारुण-पीतभासम्
यन्मूर्ति मव्यय सुखावसथं मुनीन्द्रा:।
ध्यायन्ति सप्तति शतं जिन वल्लभानां,
त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥१०॥
सुप्रभातं सुनक्षत्रं माङ्गल्यं परिकीर्तितम्।
चतुर्विंशति तीर्थानां सुप्रभातं दिने दिने ॥११॥
सुप्रभातं सुनक्षत्रं श्रेय: प्रत्यभिनन्दितम्।
देवता ऋषय: सिद्धा: सुप्रभातं दिने दिने ॥१२॥
सुप्रभातं तवैकस्य वृषभस्य महात्मन:
येन प्रवर्तितं तीर्थं भव्यसत्त्व सुखावहम् ॥१३॥
सुप्रभातं जिनेन्द्राणां ज्ञानोन्मीलितचक्षुषाम्।
अज्ञानतिमिरान्धानां नित्यमस्तमितो रवि: ॥१४॥
सुप्रभातं जिनेन्द्रस्य वीर: कमललोचन:।
येन कर्माटवी दग्धा शुक्लध्यानोग्र वह्निनना ॥१५॥
सुप्रभातं सुनक्षत्रं सुकल्याणं सुमङ्गलम्।
त्रैलोक्यहितकर्र्तृणां जिनानामेव शासनम् ॥१६॥
• इति सुप्रभात स्तोत्र -
Shraavan Maas Japya Mantra श्रावण मास जाप्य मन्त्र •
धार्मिक दृष्टि से सभी 12 महीनों में सबसे अधिक महत्व रखने वाला श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना करना विशेष रूप से फल प्रदान करने वाला माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार शिवजी का प्रिय श्रावण मास में विधिवत शिव पूजा से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है, इस पवित्र मास में भगवान शिव के इस मन्त्र द्वारा उनकी आराधना करने से इच्छित मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।
◆ ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय ◆ -
Ganesh Stuti by Nazeer Akbarabadi नज़ीर अकबराबादी: गणेश जी की स्तुति
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अव्वल तो दिल में कीजिए पूजन गनेश जी।
स्तुति भी फिर बखानिए धन-धन गनेश जी।
भक्तों को अपने देते हैं दर्शन गनेश जी।
वरदान बख़्शते हैं जो देवन गनेश जी।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥1॥
माथे पै अर्द्ध चन्द्र की शोभा, मैं क्या कहूं।
उपमा नहीं बने है मैं चुपका ही हो रहूं।
उस छवि को देख देख के आनन्द सुख लहूं।
लैलो निहार दिल में सदा अपने वो जपूं।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥2॥
इक दन्त को जो देखा किया खू़ब है बहार।
इस पै हज़ार चन्द की शोभा को डालूँ वार।
इनके गुणानुवाद का है कुछ नहीं शुमार।
हर वक्त दिल में आता है अपने यही विचार।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥3॥
गजमुख को देख होता है सुख उर में आन-आन।
दिल शाद-शाद होता है मैं क्या करूं बखान।
इल्मो हुनर में एक हैं और बुद्धि के निधान।
सब काम छोड़ प्यारे रख मन में यही आन।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥4॥
क्या छोटे-छोटे हाथ हैं चारों भले-भले।
चारों में चार हैं जो पदारथ खरे-खरे।
देते हैं अपने दासों को जो हैं बड़े-बड़ेI
अलबत्ता अपनी मेहर यह सब पर करें-करें।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥5॥
इक दस्त में तो हैगा यह सुमिरन बहार दार?
और दूसरे में फर्सी अजब क्या है उसकी धार?
तीजे में कंज चौथे कर में हैं लिए अहार?
मत सोच दिल में और तू ऐ यार बार-बार॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥6॥
अच्छे विशाल नैन हैं और तोंद है बड़ी।
हाथों को जोड़ सरस्वती हैं सामने खड़ी॥
होवे असान पल में ही मुश्किल है जो अड़ी।
फल पावने की इनसे तो है भी यही घड़ी॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥7॥
मूसा सवारी को है अजब ख़ूब बेनजीर।
क्या खूब कान पंजे हैं और दुम है दिल पजीर॥
खाते हैं मोती चूर कि चंचल बड़ा शरीर।
दुख दर्द को हरे हैं तो दिल को बधावें धीर॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥8॥
घी में मिला के कोई जो चढ़ाता है आ सिन्दूर।
सब पाप उसके डालता कर दम के बीच चूर॥
फूल और विरंच शीश पै दीपक को रख कपूर।
जो मन में होवे इच्छा तो फिर क्या है उससे दूर॥
हर आन ध्यान औ' सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि और अन-धन गनेश जी॥9॥
जुन्नार है गले में एक नाग जो काला।
फूलों के हार डहडहे और मोती की माला॥
वह हैंगे अजब आन से शिव गौरी के लाला।
सुर नर मुनि भी कहते हैं वो दीन दयाला॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥10॥
सनकादि सूर्य चन्द्र खड़े आरती करें।
और शेषनाग गंध की ले धूप को धरें॥
नारद बजावें बीन चँवर इन्द्र ले ढरें।
चारों बदन से स्तुति ब्रह्मा जी उच्चरें॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥11।
जंगम अतीत जोगी जती ध्यान लगावें।
सुर नर मुनीश सिद्ध सदा सिद्धि को पावें॥
और संत सुजन चरन की रज शीश चढ़ावें।
वेदों पुरान ग्रंथ जो गुन गाय सुनावें॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥12॥
जो जो शरन में आया है कीन्हा उसे सनाथ।
भव सिन्धु से उतारा है दम में पकड़ के हाथ।
यह दिल में ठान अपने और छोड़ सबका साथ।
तू भी ‘नज़ीर’ चरणों में अपना झुका के माथ।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥13॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी। देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥ ★
- नज़ीर अकबराबादी -
Vidyashtakam विद्याष्टकम् ★
सुविद्यावरिशो गणधरसमो ज्ञानचतुरः।
विद्याता शिष्याणां शुभगुणवंता शास्त्र कुशलः।
पुराणानां ज्ञाता नयपथचरो नीतिनिपुणः।
प्रकुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवर:॥1॥
मुमक्षुब्रम्हाज्ञ: सरलह्दय: शान्तकरण:।
स्वशिष्याणां शास्ता शुभगुणधर: सिद्धगणक:॥
सुयोगी धर्मज्ञ: सरलसरल: कर्मकुशल:।
प्रकुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवर:॥2॥
अहिंसा सत्यार्थी शमदमपरो ज्ञानपथिक:।
मलप्पा -श्रीमन्त्योरजनि जनुषा गौरवकर:॥
प्रविद्यो विख्यात: सुरगुरु- सम: वीत-वसन:
प्रकुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवर:॥3॥
सदालग्गा-ग्रामे यो जनिमवाप्नोच्छारदि-तिथौ।
धरो विद्याया: यो प्रथित-यशसोऽभूदनुपम:॥
ततो लब्ध्वा ज्ञानं उपनय-विधानस्य विधिना।
प्रकुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवर:॥4॥
इतो लब्ध्वाऽऽचार्य ऋषिवर-वरं 'देश'-भणितम्।
व्रत ब्रह्माख्यं योऽलभत परम ह्यात्म रसिक:।
ततोऽनुज्ञां प्राप्य गतवानसौ ज्ञानजलधि॥
प्रकुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवर:॥5॥
यशस्वी तेजस्वी सरसिजसमो रागरहित:।
यथाभानुरनित्यं तपति सततं ह्यष्णकिरणः।
तथेवायं पूज्यस्तपति भवने शुद्धचरणः।
प्रकुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवर:॥6॥
प्रकृत्या सोम्यो यो हिमकरसमः शान्तिचषकः।
सुधीर्वाग्मी शिष्ट: शुभगुणधनः शुद्धकरण।
महापीठासीनो बहुगुण निधिर्लोभ रहितः।
प्रकुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवर:॥7॥
सुविद्या वागीश: निजगुरुकृतिक्रान्त-प्रवण:।
मुनिशे: संवंध्यः विदित महिमा मंगलकरः।
चिरंजीव्यादेषा भवभयभृतां मौलिशिखरः।
प्रकुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवर:॥8॥
विद्यासागर आचार्य: प्रथितो भुवनत्रये ।
ससंघाय नमस्तस्मै, नमस्तस्मै नमो नमः॥
विद्यासिन्धवष्टकमिदं, भक्त्या भागेन्दुना कृतम्।
महापुण्यप्रदं लोकै: प्रपठन् याति सदा सुखम्॥9॥
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Progress Mantra उन्नति मन्त्र ◆
ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
◆ अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं। -
Tikkhuton Ka Paath (Guru Vandan) तिक्खुतों का पाठ (गुरु वंदन) •
जब कभी हम संत मुनिराज के पास जाते हैं अथवा मुनिराज हमारे सामने आते दिखते हैं तो हम तिक्खुतों का पाठ का उच्चारण कर वंदन करते हैं। तिक्खुतों के उच्चारण के साथ किया गया विधिपूर्वक भाव वंदन अत्यंत प्रभावशाली हो जाता है।
गुरु वंदन का पाठ
•
तिक्खुत्तों आयाहिणं पयाहिणं करेमि,
वंदामि, नमंसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि
कल्लाणं मंगलं, देवयं, चेइयं,
पज्जुवासामि मत्थएण वंदामि।
• भावार्थः- भगवन्! दाहिनी और से प्रारम्भ करके पुनः दाहिनी और तक आपकी तीन बार प्रदक्षिणा करता हूँ। आपको मैं वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, आपका सत्कार करता हूँ, सम्मान करता हूँ। आप कल्याण रूप हैं, मंगल रूप हैं, देव स्वरूप हैं, चैत्य स्वरूप यानी ज्ञान स्वरूप हैं। मैं आपको मस्तिष्क झुकाकर आपके चरण कमलों में मन, वचन और काया से सेवा भक्ति अर्थात् पर्युपासना एवं वंदना करता हूँ।
•
तिक्खुतों के पाठ में चयनित शब्दों का रहस्यः-
गुरु वंदन हेतु, अभिव्यक्ति के लिए तिक्खुतो के पाठ में विनय के सूचक चार शब्द हैं। नमनसामि का मतलब मैं शरीर से झुकता हूँ। वंदामि का अर्थ मैं वाणी द्वारा आपके गुणों का आदर करता हूँ। मन से गुरु के प्रति सक्कारेमि, अहोभाव का सूचक है तो सम्माणेमि का मतलब गुरु को देख मेरी प्राथमिकता आपके समीप आकर दर्शन की है। इस प्रकार के सही भावपूर्वक वंदन करने से मन, वचन और काया तीनों का तालमेल हो जाता है। वाणी से गुरु का गुणगान करने एवं उनको कल्याणकारी, मंगलकारी, देव स्वरूप कहने से उनके प्रति श्रद्धा, आदर, बहुमान की अभिव्यक्ति होती है और मन चुम्बक की भांति गुरु के प्रति आकर्षित होने लगता है। जिससे वंदन करने वाले में भावात्मक बदलाव आ जाता है। इसके साथ ही उसमें रेकी और प्राणिक हिलींग के सिद्धान्तानुसार गुरु की ऊर्जा, आशीर्वाद की तरंगों का प्रवाह होने लगता है। फलतः व्यक्ति की अशुभ लेश्याएँ शुभ में परिवर्तित होने लगती है। आभा मंडल शुद्ध होने लगता है। दूसरों के जो-जो गुणों एवं दोषों का हम बखान करते हैं, वे हमारे अंदर भी विकसित होने लगते हैं। अर्थात् गुणाणुवाद से, वंदन कर्ता में भी सद्गुण बढ़ने लगते हैं। परिणाम स्वरूप वंदन कर्ता भय, तनाव, दुःख, नकारात्मक सोच आदि भावों से मुक्त होने लगता है एवं उसमें अभय, सन्तोष, प्रसन्नता, उत्साह का प्रार्दुभाव होने लगता है। आत्मा कर्मो के आवरण से मुक्त एवं हल्की होने लगती है। हल्की वस्तु ऊपर उठती है। अतः सही विधि द्वारा गुरु वंदन पाठ से भावों द्वारा गुरु वंदन से नीच गौत्र का बंध नहीं होता। वंदन करते समय दृष्टि गुरु की तरफ, भावों में गुरु के प्रति श्रद्धा एवं विनय तथा वाणी में गुरु के गुणों के प्रति प्रमोदभाव की अभिव्यक्ति हो। वंदन बिना किसी स्वार्थ एवं कामना के अहोभाव पूर्वक होना चाहिए अन्यथा वह मात्र द्रव्य वंदन ही होगा, जिससे अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा। चिन्तनपूर्वक समझकर की गई धार्मिक क्रियाओं से लाभ बहुत बढ़ जाता है। तिक्खुतों के पाठ में उच्चारित प्रत्येक शब्द के रहस्य का चिंतन करते हुए यदि शारीरिक क्रिया करें तो वह क्रिया कभी भार स्वरूप नहीं लगती। रोग भी दुःख, तनाव, भय, अशान्ति का प्रमुख कारण है। गुरु वंदन से कषाय मंद होते हैं। प्रमाद दूर होता है और संयमित जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। फलतः अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है और रोगों से मुक्ति मिलती है। • -
Guru Paduka Stotram गुरु पादुका स्तोत्रम् ◆
अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् |
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 1 ‖
कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् |
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 2 ‖
नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः |
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 3 ‖
नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्यां |
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 4 ‖
नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां |
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 5 ‖
पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां |
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 6 ‖
शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां |
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 7 ‖
स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां |
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 8 ‖
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां |
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ 9 ‖ ◆ -
Krishnam Vande Jagadgurum (Geeta) कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् (गीता) ★
पराकृतनमद्बन्धं परं ब्रह्म नराकृति।
सौन्दर्यसारसर्वस्वं वन्दे नन्दात्मजं महः ।।१।।
प्रपन्नपारिजाताय तोत्रवेत्रकपाणये।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय गीतामृतदुहे नमः ।।२।।
वसुदेवसुतं देवं कृष्ण चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।३।।
अतसी पुष्प संकाशं हार नूपुर शोभितम् ।
रत्न कंकण केयूरं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।४।।
कुटिलालक संयुक्तं पूर्णचन्द्र विभाननम् ।
विलसत् कुण्डल धरं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।५।।
मंदार गंध संयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजं ।
वरहि पिंचावचूड़ांगम् कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।६।।
उत्फुल्ल पद्मपत्राक्षं नीलजीमृत संनिभम् ।
यादवानां शिरो रत्नं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।७।।
रुक्मिणी केलिसंयुक्तं पीताम्बरं सुशोभितम् ।
अवाप्त तुलसी गन्धं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।८।।
गोपिकानां कुचद्वन्धं कुंकुमांकित वक्षसम् ।
श्रीनिकेतं महेष्वासं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।९।।
श्रीवत्सांक महोस्करम् वनमाला विराजितम् ।
शंख चक्र धरं देवं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।१०।।
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् पीताम्बरादरुणविम्बफलाधरोष्ठात्। पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् कृष्णात् परं किमपि तत्त्वमहं न जाने।।११।।
भीष्मद्रोणतटा जयद्रथजला गान्धारनीलोत्पला।
शल्यग्राहवती कृपेण वहनी कर्णेन वेलाकुला ।।१२।।
अश्वत्थामविकर्णघोरम करा दुर्योधनावर्तिनी
सोत्तीर्णा खलु पाण्डवै रणनदी कैवर्तकः केशवः ।।१३।।
एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतमेको देवो देवकीपुत्र एव।
एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ।।१४।। ★ -
Shri Guru Stotram श्री गुरु स्तोत्रम् ★
|| श्री महादेव्युवाच ||
गुरुर्मन्त्रस्य देवस्य धर्मस्य तस्य एव वा |
विशेषस्तु महादेव ! तद् वदस्व दयानिधे ||
श्री महादेवी (पार्वती) ने कहा : हे दयानिधि शंभु ! गुरुमंत्र के देवता अर्थात् श्री गुरुदेव एवं उनका आचारादि धर्म क्या है – इस बारे में वर्णन करें |
|| श्री महादेव उवाच ||
जीवात्मनं परमात्मनं दानं ध्यानं योगो ज्ञानम् |
उत्कल काशीगंगामरणं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||1||
श्री महादेव बोले: जीवात्मा-परमात्मा का ज्ञान, दान, ध्यान, योग पुरी, काशी या गंगा तट पर मृत्यु – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||1||
प्राणं देहं गेहं राज्यं स्वर्गं भोगं योगं मुक्तिम् |
भार्यामिष्टं पुत्रं मित्रं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||2||
प्राण, शरीर, गृह, राज्य, स्वर्ग, भोग, योग, मुक्ति, पत्नी, इष्ट, पुत्र, मित्र – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||2||
वानप्रस्थं यतिविधधर्मं पारमहंस्यं भिक्षुकचरितम् |
साधोः सेवां बहुसुखभुक्तिं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||3||
वानप्रस्थ धर्म, यति विषयक धर्म, परमहंस के धर्म, भिक्षुक अर्थात् याचक के धर्म – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||3||
विष्णो भक्तिं पूजनरक्तिं वैष्णवसेवां मातरि भक्तिम् |
विष्णोरिव पितृसेवनयोगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||4||
भगवान विष्णु की भक्ति, उनके पूजन में अनुरक्ति, विष्णु भक्तों की सेवा, माता की भक्ति, श्रीविष्णु ही पिता रूप में हैं, इस प्रकार की पिता सेवा – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||4||
प्रत्याहारं चेन्द्रिययजनं प्राणायां न्यासविधानम् |
इष्टे पूजा जप तपभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||5||
प्रत्याहार और इन्द्रियों का दमन, प्राणायाम, न्यास-विन्यास का विधान, इष्टदेव की पूजा, मंत्र जप, तपस्या व भक्ति – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||5||
काली दुर्गा कमला भुवना त्रिपुरा भीमा बगला पूर्णा |
श्रीमातंगी धूमा तारा न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||6||
काली, दुर्गा, लक्ष्मी, भुवनेश्वरि, त्रिपुरासुन्दरी, भीमा, बगलामुखी (पूर्णा), मातंगी, धूमावती व तारा ये सभी मातृशक्तियाँ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||6||
मात्स्यं कौर्मं श्रीवाराहं नरहरिरूपं वामनचरितम् |
नरनारायण चरितं योगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||7||
भगवान के मत्स्य, कूर्म, वाराह, नरसिंह, वामन, नर-नारायण आदि अवतार, उनकी लीलाएँ, चरित्र एवं तप आदि भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||७||
श्रीभृगुदेवं श्रीरघुनाथं श्रीयदुनाथं बौद्धं कल्क्यम् |
अवतारा दश वेदविधानं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||8||
भगवान के श्री भृगु, राम, कृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि आदि वेदों में वर्णित दस अवतार श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||8||
गंगा काशी कान्ची द्वारा मायाऽयोध्याऽवन्ती मथुरा |
यमुना रेवा पुष्करतीर्थ न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||9||
गंगा, यमुना, रेवा आदि पवित्र नदियाँ, काशी, कांची, पुरी, हरिद्वार, द्वारिका, उज्जयिनी, मथुरा, अयोध्या आदि पवित्र पुरियाँ व पुष्करादि तीर्थ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||9||
गोकुलगमनं गोपुररमणं श्रीवृन्दावन मधुपुर रटनम्|
एतत् सर्वं सुन्दरि ! मातर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||10||
हे सुन्दरी ! हे मातेश्वरी ! गोकुल यात्रा, गौशालाओं में भ्रमण एवं श्री वृन्दावन व मधुपुर आदि शुभ नामों का रटन – ये सब भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||10||
तुलसीसेवा हरिहरभक्तिः गंगासागर-संगममुक्तिः |
किमपरमधिकं कृष्णेभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||11||
तुलसी की सेवा, विष्णु व शिव की भक्ति, गंगा सागर के संगम पर देह त्याग और अधिक क्या कहुं परात्पर भगवान श्री कृष्ण की भक्ति भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||11||
एतत् स्तोत्रम् पठति च नित्यं मोक्षज्ञानी सोऽपि च धन्यम् |
ब्रह्माण्डान्तर्यद्-यद् ध्येयं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||12||
इस स्तोत्र का जो नित्य पाठ करता है वह आत्मज्ञान एवं मोक्ष दोनों को पाकर धन्य हो जाता है | निश्चित ही समस्त ब्रह्माण्ड मे जिस-जिसका भी ध्यान किया जाता है, उनमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||12|| ★
|| इति वृहदविज्ञान परमेश्वरतंत्रे त्रिपुराशिवसंवादे श्रीगुरोःस्तोत्रम् ||
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