Folgen
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Ali Akbar Natiq was born in a village in the Punjab province of Pakistan, where he received his initial education. Later due to financial constraints he started to work as a mason, and became skilled at building domes, mosques and minarets. His love for education, literature and history specifically, had him complete his BA and MA degrees privately. He read Arabic books brought for him by his father Iraq and Kuwait where he worked. In 1998, Natiq lived in the Middle East for some time as a laborer. Natiq’s experiences from his life in the village, as a mason and later as a laborer in the middle east come to life in his stories, that are at once poignant, tender and deeply moving.
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अली अकबर नातिक़ का जन्म पाकिस्तान के पंजाब के ओकारा ज़िले में हुआ था । उनके पूर्वज 20वीं सदी के अंत में लखनऊ के पास फ़ैज़ाबाद से पंजाब के फ़िरोज़पुर में जा बेस थे। 1947 में भारत के विभाजन में वे पाकिस्तान चले गए और ओकारा में बस गए। नातिक़ ने अपने गांव के हाई स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई की और ओकारा के गवर्नमेंट कॉलेज से एफए की परीक्षा पास की। आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण, उन्होंने काम करना शुरू कर दिया। साथ ही मुल्तान के बहाउद्दीन ज़कारिया विश्वविद्यालय से निजी तौर पर बीए और एमए की डिग्री की पढ़ाई की। कुछ साल बाद, नातिक़ ने राजमिस्त्री का काम करना शुरू किया और गुंबद, मीनारें और मस्जिद बनाने में कुशलता हासिल की। उर्दू साहित्य और इतिहास में उनकी रुचि बनी रही और उन्होंने अरबी की किताबें भी पढ़ीं जो उनके पिता इराक और कुवैत से लाए थे, जहाँ वे काम पर जाते थे। जब भी उन्हें काम से फुर्सत मिलती, वे पढ़ाई में व्यस्त हो जाते। 1998 में, वे कुछ समय के लिए सऊदी अरब और मध्य पूर्व में मजदूर के रूप में भी रहे। उन्होंने इस यात्रा में बहुत कुछ सीखा।आज नातिक़ पाकिस्तान के सबसे बेहतरीन लेखकों में से जाने जाते हैं। उनकी कहानियाँ कई अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं और किताबों में छपी हैं।
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When two literary giants meet, not in person but in a common creative playground called ‘translation’, the results are always interesting and satisfying. Oscar Wilde’s short story “ The Devoted Friend” is a satire about a friendship that is anything but nurturing or even reciprocal. Dharamvir Bharti translates without losing any nuance and makes the story his own.
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Fehlende Folgen?
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The stories of losing home are the most profoundly disturbing. Yet these “stories” are the reality of millions of people across the world, everyday. Today there are over 117.3 million people who have been forcibly displaced from their homes. We forget and we repeat ad infinitum the same patterns of greed, revenge and loss. And yet, in the midst of this unspeakable sadness, there is a glimmer of hope- not offered by politicians, big institutions or organizations, but in the basic decency and humanity of a common man, who against all odds, decides to do what is right. -------------------------
अपने घर से विस्थापित हो जाने की कहानी सिर्फ़ एक दर्दनाक कहानी नहीं। ये आज दुनिया के करोड़ों लोगों की वास्तविकता है। लालच, प्रतिशोध और पीड़ा के चक्रव्यूह में से ना निकल पाने वाले मानव समुदाय की सच्चाई भी है। लेकिन फिर भी, इस अकथनीय दुःख के बीच, आशा की एक किरण है - राजनेताओं, बड़े संस्थानों या संगठनों में नहीं, बल्कि एक आम इंसान की बुनियादी शालीनता और मानवता में। ------------------------Listen to Hindi kahaniyan and Urdu Kahaniyan by famous as well as lesser known writers. You will find here stories from everyone from Premchand to Ismat Chughtai ; Suryabala to Mohan Rakesh, Kaleshwar and Mannu Bhandari.
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If Premchand was looking down from the heavens above at school kids across Hindi speaking India, reading the same two or three stories of his, with the teacher blaring ‘morals’ at the end of class, he would be appalled. In popular imagination over the last seventy five years, Premchand’s writing has come to mean stories set against a depressing poverty stricken rural backdrop, melodramatic stories with intense emotions …and nothing could be farther from the truth. We have done a huge disservice to Premchand and to literature in general by relegating him to textbooks and impassive classroom lectures.
In the brilliantly written biography of his father Amrit Rai talks not only about Premchand’s works but places him in the socio-cultural context of his time, drawing from a variety of sources. In doing so we see a 360 degree Premchand- writer, activist, progressive, satirist, husband and father.
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स्वर्गवासी प्रेमचंद अगर ऊपर आसमान से हिंदी भाषी भारत भर के स्कूली बच्चों को उनकी वही दो या तीन कहानियाँ पढ़ते देख रहे होते, और देखते की कैसे शिक्षक कक्षा के अंत में कैसे 'नैतिकता' का ढिंढोरा पीट रहे हैं, तो वे चकित रह जाते। पिछले पचहत्तर वर्षों में लोकप्रिय कल्पना में, प्रेमचंद के लेखन का अर्थ निराशाजनक, गरीबी से त्रस्त ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित कहानियाँ हैं ... लेकिन ये बात सच्चाई से बहुत दूर है हमने प्रेमचंद को पाठ्य पुस्तकों और भावहीन कक्षा व्याख्यानों तक सीमित करके आम तौर पर प्रेमचंद और साहित्य के प्रति बहुत बड़ा अहित किया है।
अपने पिता की शानदार ढंग से लिखी गई जीवनी में अमृत राय न केवल प्रेमचंद के रचनाशिल्प के बारे में बात करते हैं, बल्कि विभिन्न स्रोतों से उन्हें अपने समय के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में रखते हैं। ऐसा करते हुए हमें प्रेमचंद की एक संपूर्ण तस्वीर देखने को मिलती है- प्रेमचंद लेखक, कार्यकर्ता, प्रगतिशील, व्यंग्यकार, पति और पिता के रूप में।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय :धनपत राय श्रीवास्तव जिन्हे साहित्य प्रेमी प्रेमचंद के नाम से जाने जाते हैं, हिन्दी और उर्दू के शायद सबसे अधिक लोकप्रिय रचनाकार हैं । उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनके उपन्यास सुर कथाएं हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में भी उन्होंने लिखा।वे हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस के संपादक और प्रकाशक भी रहे। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई भी गए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। वे जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे।
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हिन्दी के सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक राजेंद्र यादव हिन्दी साहित्य में ‘नयी कहानी आंदोलन' के संस्थापक माने जाते हैं। मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सन् 1930 में स्थापित साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ जो की सन् 1953 में बन्द हो गयी थी, के पुनर्प्रकाशन की बाग डोर राजेंद्र यादव जी ने सँभाली और उसे प्रेमचन्द की जयन्ती के दिन 31 जुलाई 1986 को पुनः प्रारम्भ किया था।
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Sahitya Akademi and Vyas Aamman awardee Nasira Sharma pens a poignant story of how amidst mindless violence and bleak poverty, humanity sprouts in small gestures and kind words. साहित्य अकादमी और व्यास सम्मान पुरस्कार विजेता नासिरा शर्मा द्वारा लिखी मार्मिक कहानी जिसमे हिंसा और दरिद्रता के बीच पनपती है इंसानियत और करुणा।#hindi #kahani,#hindisahitya,#kahani,#kavita,#Sahitya,#sunokahani, #hindipodcast,#radiokahani,#hindi #radio,#urdupoetry,#urdu #shayari,#urdukahani,#kisse,#audible,#audio,#storytelling in hindi,#hindumuslimbhaibhai,#nasirasharma
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Vijaydan Detha, popularly knowne as “Bijji”, spent several decades collecting folk stories from in and around his village Borunda in rajasthan. In their retelling his stories straddled myths and legends, reality and fantasy, observation and a commentary on the world of his beloved Rajasthan.
His work received national and international acclaim – he was awarded the Padma Shri, the Rajasthan Ratna Award and the Sahitya Akademi Award among various others.
विजयदान देथा, जिन्हें "बिज्जी" के नाम से जाना जाता है, ने राजस्थान में अपने गाँव बोरुंदा और उसके आसपास से लोक कहानियाँ एकत्र करने में कई दशक बिताए। उनकी कहानियों में मिथक और किंवदंतियाँ, वास्तविकता और कल्पना, अवलोकन और उनके प्रिय राजस्थान पर एक टिप्पणी शामिल है।
उनके काम को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा मिली - उन्हें कई अन्य पुरस्कारों के अलावा पद्म श्री, राजस्थान रत्न पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
Beta Kiska? - Vijaydan Detha
Translation: Kailash Kabir बेटा किसका ? - विजयदान देथा अनुवाद - कैलाश कबीर
Many of his stories and novels have been adapted for the stage and the screen including Mani Kaul's Duvidha (1973), Habib Tanvir and Shyam Benegal's Charandas Chor (1975), Prakash Jha's Parinati (1986), Amol Palekar's Paheli (2005), Pushpendra Singh's The Honour Keeper (2014), Dedipya Joshii's Kaanchli Life in a Slough(2020), Pushpendra Singh's Laila aur Satt Geet (2020)----जीवन परिचयलोक कथाओं एवं कहावतों का अद्भुत संकलन करने वाले पद्मश्री विजयदान देथा की कर्मस्थली उनका पैथृक गांव बोरुंदा दा ही रहा तथा एक छोटे से गांव में बैठकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के साहित्य का सृजन किया। राजस्थानी लोक संस्कृति की प्रमुख संरक्षक संस्था रूपायन संस्थान (जोधपुर) के सचिव देथा का जन्म 1 सितंबर 1926 को बोरूंदा में हुआ। प्रारम्भ में 1953 से 1955 तक बिज्जी ने हिन्दी मासिक प्रेरणा का सम्पादन किया। बाद में हिन्दी त्रैमासिक रूपम, राजस्थानी शोध पत्रिका परम्परा, लोकगीत, गोरा हट जा, राजस्थान के प्रचलित प्रेमाख्यान का विवेचन, जैठवै रा सोहठा और कोमल कोठारी के साथ संयुक्त रूप से वाणी और लोक संस्कृति का सम्पादन किया। विजयदान देथा की लिखी कहानियों पर दो दर्जन से ज़्यादा फ़िल्में बन चुकी हैं, जिनमें मणि कौल द्वारा निर्देशित 'दुविधा' पर अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके अलावा वर्ष 1986 में उनकी कथा पर चर्चित फ़िल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा द्वारा निर्देशित फिल्म परिणीति काफ़ी प्रभावित हुई है। राजस्थान साहित्य अकादमी 1972-73 में उन्हें विशिष्ट साहित्यकार के रूप में सम्मानित कर चुकी है।[1]'दुविधा' पर आधारित हिंदी फिल्म 'पहेली' में अभिनेता शाहरुख खान और रानी मुखर्जी मुख्य भूमिकाओं में थे। यह उनकी किसी रचना पर बनी अंतिम फिल्म है।[2] रंगकर्मी हबीब तनवीर ने विजयदान देथा की लोकप्रिय कहानी 'चरणदास चोर' को नाटक का स्वरूप प्रदान किया था और श्याम बेनेगल ने इस पर एक फिल्म भी बनाई थी।Listen to Hindi kahaniyan and Urdu Kahaniyan by famous as well as lesser known writers. You will find here stories from everyone from Premchand to Ismat Chughtai ; Suryabala to Mohan Rakesh, Kaleshwar and Mannu Bhandari. -
Love is a complex emotion. One that few have been able to understand, let alone explain. Mannu Bhandari delves into the mind of a young woman at crossroads, as she tries to untangle the emotions she feels for the two men in her life.There are few love stories as candid and powerful as this one. The story was made into a memorable film by Basu Chatterjee, ‘Rajnigandha’A new kind of Hindi writing emerged post-independence approximately from the late 1950s to the early 1960s. The subjects that writers focussed on came from a newly independent, rapidly urbanizing and industrializing India. The narratives dealt with problems between the sexes, especially with the emergence of the working woman.The scenarios mirrored the difficulties of everyday negotiations of life and work. Mannu Bhandari, who taught at Delhi's Miranda House for many years, was one of the pioneers of the “Nayi Kahani movement”. Her works spans decades and one finds in them many memorable female characters...one such is Bua in Akeli.
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मुग़लों ने अपनी सल्तनत अंग्रेज़ों को कब और कैसे बक्शी, ये जानिए गप्पबाज़हीरो जी से। लेकिन अगर वाकयी हिंदुस्तान पर अंग्रेज़ी हुकूमत के पीछे की कहानी पता लगानी है तो William Dalrymple और Anita Anand की podcast 'Empire' सुनिए यहाँ -https://open.spotify.com/show/0sBh58hSTReUQiK4axYUVx?si=659c1a5311b94616
Thumbnail Art:Title: Shah 'Alam, Mughal Emperor (1759–1806), Conveying the Grant of the Diwani to Lord Clive, August 1765
Artist: Benjamin West (1738–1820)भगवतीचरण वर्मा की लिखी और कहानियां यहाँ सुनिए - छेह आने का टिकट - https://www.youtube.com/watch?v=A2saxt8KRFwवसीयत-https://youtu.be/hZ4KnyxR8EUदो बांके- https://youtu.be/8cVo5NQAhbk------------------------------------भगवती चरण वर्मा का जीवन परिचय /Bhagwati Charan Verma ka Jeevan Parichayभगवती चरण वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। उन्होंने प्रयागराज से बी॰ए॰, एल॰एल॰बी॰ की डिग्री प्राप्त की लेकिन उनकी रूचि कविता लेखन में थी । फिर उपन्यासकार के रूप में वे विख्यात हुए। वर्मा जी ने 1936 के करीब फिल्म कारपोरेशन, कलकत्ता में कार्य भी किया। ‘विचार’ नामक साप्ताहिक के प्रकाशन-संपादन के बाद बंबई में फिल्म-कथालेखन उन्होंने किया। इसके उपरांत दैनिक ‘नवजीवन’ का सम्पादन, फिर आकाशवाणी के कई केंन्दों में कार्य भी वर्मा जी ने किया। उनके उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर दो बार फिल्म-निर्माण हुआ। पद्मभूषण तथा राज्यसभा की मानद सदस्यता भी उन्हें प्राप्त हुई। --------Listen to Hindi kahaniyan and Urdu Kahaniyan by famous as well as lesser known writers. You will find here stories from everyone from Premchand to Ismat Chughtai ; Suryabala to Mohan Rakesh, Kaleshwar and Mannu Bhandari.Youtube channel, you can listen to Hindi and Urdu Stories by famous writers of Hindi sahitya/ literature. Here you will find stories and poetry by great authors of Hindi and Urdu. Some of these are classics and others are rare gems that you may never have heard or read. There are works by well known writers such as Premchand, Sharat Chandra, Manto, Ismat Chughtai, Mohan Rakesh, Phanishwar Nath Renu, Mannu Bhandari, Harishankar Parsai. Some are rare works by Dilip Kumar, Balraj Sahani and Gulzar. ----- Meet me at these Social Media links: Facebook : https://www.facebook.com/StoryjamArti Instagram : @arti_storyjamMy podcast on other platforms: Spotify open.spotify.com/show/0rG7ez0Pku1MuWhfvo6Dtz Apple Podcasts podcasts.apple.com/us/podcast/storyjam-hindi-urdu-audio-stories/id1513845846 Gaana.com gaana.com/podcast/storyjam-hindi-urdu-audio-stories-season-1 RadioPublic radiopublic.com/storyjam-GmywpN Pocket Casts pca.st/rwdymlsdOvercast overcast.fm/itu #Hindi #StoryJam #Bhagwaticharanvermachitralekha #chitralekha #bhagwaticharanverma #upanyas #kahaniyan
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Shrilal Shukla was a civil servant and a very observant one too! What he saw around him the hinterlands of Uttar Pradesh and in the corridors of power in big cities gave him ample material for his rich life as a writer. Rural decay and urban apathy, all found their way in his satirical novels. The best known of which remains ‘Raag Darbari’. The novel inspired a TV serial in its time. Some say the current hit webseries Panchayat too has a Raag Darbari flavor.
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एक आईएएस अधिकारी के रूप में श्रीलाल शुक्ल ने उत्तर प्रदेश के भीतरी इलाकों और बड़े शहरों में सत्ता के गलियारों में जो देखा, उससे उन्हें अपने व्यंगात्मक लेखन के लिए पर्याप्त सामग्री मिली। ग्रामीण पतन और शहरी उदासीनता, सभी ने उनके उपन्यासों में जगह पाई। उनके उपन्यासों में सबसे प्रसिद्ध है 'राग दरबारी' है। बहुत साल पहले इस उपन्यास पर एक टीवी सीरियल भी बना था। कुछ लोगों का कहना है कि मौजूदा हिट वेबसीरीज पंचायत में भी राग दरबारी का सा रस है।
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There are some relationships that have copious amounts written about them, and then there are a handful that we seldom read about. One such is that of a father-in-law and daughter-in-law. In India their conversations are seldom spoken about, often buried under the heavy burden of familial hierarchy. This story by Ajay Jugran offers a glimpse of tender affection and respect between a daughter-in-law and her father-in-law, in a story steeped in a bygone era in a misty small town. ------------------कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनके बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, और फिर कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनके बारे में हम शायद ही कभी पढ़ते हैं। ऐसा ही एक रिश्ता है ससुर और बहू का। भारत में उनकी बातचीत अक्सर पारिवारिक परम्पराओं के भारी बोझ के नीचे दबी रहती है। अजय जुगरान की यह कहानी एक छोटे शहर में, एक बीते युग में, एक बहू और उसके ससुर के बीच कोमल स्नेह और सम्मान की झलक पेश करती है।-----------------Listen to Hindi kahaniyan and Urdu Kahaniyan by famous as well as lesser known writers. You will find here stories from everyone from Premchand to Ismat Chughtai ; Suryabala to Mohan Rakesh, Kaleshwar and Mannu Bhandari.
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1960’s was an era of literary experimentation and introspection. The stories often reflected on the juggernaut of rapid urbanisation and the social changes transforming post-independence India. Gyanranjan, despite having written far fewer stories than his contemporaries became one of the most popular names in Sathotri Sahitya (literature of the 60’s). This story is an example of psychoanalytic writing that was a distinct departure from themes of traditional stories until then. ---------1960 का दशक साहित्यिक प्रयोग और आत्मनिरीक्षण का युग था। कहानियाँ अक्सर तेजी से बढ़ते शहरीकरण और आज़ादी के बाद के भारत में आए सामाजिक बदलावों को प्रतिबिंबित कर रही थी। ज्ञानरंजन, अपने समकालीनों की तुलना में बहुत कम कहानियाँ लिखने के बावजूद, साढोत्तरी साहित्य (60 के दशक का साहित्य) में सबसे लोकप्रिय नामों में से एक बन गए। यह कहानी मनोविश्लेषणात्मक लेखन का एक उदाहरण है जो उस समय तक की पारंपरिक कहानियों के विषयों से अलग था।#hindi #hindikahani #storyjam #sahitya #psychology
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Shekhar Joshi was born in Almora, Uttarakhand. His stories carried his home in them. An important voice in the ‘Nayi Kahani’ movement of Hindi literature, Joshi’s stories talked of the struggles of his people, their poverty, exploitation and resistance. This story ‘Dajyu’ was also made into a film by the Children’s Film Society of India.
हिंदी साहित्य के 'नयी कहानी' युग की सशक्त आवाज़, शेखर जोशी की कहानियों में उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र की हवा और हरियाली बसी है. लेकिन यथार्त से दूर नहीं हैं ये कहानियां. पहाड़ी इलाकों की गरीबी, जीवन संघर्ष, प्रतिरोध की बात उनके लेखन में उतनी ही झलकती है, जितनी पहाड़ी जीवन की सौम्यता और सौंदर्य.
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देश का राजनैतिक तापमान बढ़ता जा रहा है। इस पसीने छुड़ा देने वाली रस्साकशी के माहौल में दो पल रुक कर मीठे व्यंग का शरबत पीजिये। और हाँ, एक सहानुभूति भरी नज़र ज़रा उस छुटभैये नेता की ओर भी जिसका भविष्य हर इलेक्शन से पहले थाली में कंचे सा डोलता है।As the mercury rises on the nation’s elections, we are all sure to get caught in the crossfire of barbs and brickbats between parties…but for now let's pause a second to smile and savor the forgotten sweetness of a well worded satire. And if you think you have it bad, give a thought to the poor small time neta, whose future rolls around like a marble on a plate, with every election.Manohar Shyam Joshi मनोहर श्याम जोशी ने भारतीय टेलीविज़न को बहुत सी यादगार कहानियां दी- हम लोग, बुनियाद, मुंगेरी लाल के हसीन सपने इत्यादि। आधुनिक हिन्दी साहित्य के गद्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार होने के साथ साथ वे जनवादी-विचारक, फिल्म पट-कथा लेखक, संपादक, कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ-लेखक थे।उपन्यासकुरु कुरु स्वाहा -1980कसप - 1982हरिया हरक्युलिस की हैरानी - 1994 हमज़ाद - 1996टा टा प्रोफ़ेसर -2001कयाप - 2001कौन हूँ मैं - 2006कपीशजी - 2009वधस्थल - 2009उत्तराधिकारिणी - 2015दूरदर्शन धारावाहिकहमलोगबुनियादकक्का जी कहिनमुंगेरी लाल के हसीन सपनेंहमराहीज़मीन आसमानगाथाहिन्दी फ़िल्मेंहे रामपापा कहते हैंअप्पू राजाभ्रष्टाचारListen to Hindi kahaniyan and Urdu Kahaniyan by famous as well as lesser known writers. You will find here stories from everyone from Premchand to Ismat Chughtai ; Suryabala to Mohan Rakesh, Kaleshwar and Mannu Bhandari.
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Born in Rawalpindi in 1942, playwright and author Swadesh Deepak made Ambala his home. He lived there until 2006, when one day he stepped out of his house for a walk and never returned. His play “Court Martial” is said to have had over 5000 shows across the country and yet Deepak shunned fame. Battling Bipolar disorder he stepped away for treatment, keeping little contact with the outside world. His return to the world of letters was momentous with an autobiographical account of his illness, Maine Mandu Nahin Dekha, and the play Sabse Udaas Kavita. He went on to win the 2004 Sahitya Akademi Award. Swadesh Deepak has not been found to this date.
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Much has been written about Manto. In his times, he was perhaps talked about more than his written works. Dragged into court, condemned by the custodians of culture, ridiculed by the scholars of “serious literature”, Manto lived and wrote as he pleased. He was asked why he wrote and he replied with a honest and witty article, “Main afsana kyunkar likhta hun”. Then he one upped himself by writing a critique of the article and of himself as a writer.---------------------------Manto was incorrigible!Nothing could make him stop writing about the world as he saw it for as long as he lived. Not six court cases of obscenity, not the partition of his beloved nation and the difficult decision to move to Pakistan, not the abject poverty that drove him to near homelessness, not the bid of well-wishers to admit him to a mental asylum (meant to cure alcoholism). He lived till he wrote and then when he was told he couldn’t write anymore, he died. What he wrote about were taboo subjects, how he wrote them was taboo too. He was rebuked and ostracised but he continued imbuing all his characters- the pimps, prostitutes, lunatics, free spirited women- with the very same dignity that was denied to him.------------------------- उर्दू लेखक, सआदत हसन मंटो (11 मई 1912 – 18 जनवरी 1955) अपने बेबाक लेखन के लिए जाने गए. कहानियों में अश्लीलता के आरोप मंटो पर लगे और उन्हें छह बार अदालत जाना पड़ा था, लेकिन ये आरोप कभी सिद्ध नहीं हुए. वे अपनी लघु कथाओं, बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए।कहानीकार होने के साथ-साथ मंटो फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। सिर्फ इक्कीस साल के लेखन में, उन्होंने बाइस लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित कर डाले----------------------------------Social Media Links: ----Facebook : https://www.facebook.com/StoryjamArtiInstagram : @arti_storyjamClub House : @artijain---------------------------------------------------------------------------My podcast on other platforms:Spotifyopen.spotify.com/show/0rG7ez0Pku1MuWhfvo6DtzApple Podcastspodcasts.apple.com/us/podcast/storyjam-hindi-urdu-audio-stories/id1513845846Gaana.comgaana.com/podcast/storyjam-hindi-urdu-audio-stories-season-1RadioPublicradiopublic.com/storyjam-GmywpNPocket Castspca.st/rwdymlsdOvercastovercast.fm/itu#Hindi #StoryJam #hindikavita #Urdupoetry #urdu #mantoiyat #tobateksingh #manto #mantokikahani #mantokikahaniyan #progressivewriters
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नमस्कार, मेरा नाम आरती है और में Storyjam में हर हफ्ते आपको सुनाती हूँ हिंदी में एक कहानी। अगर आप को कहानियां सुनना अच्छा लगता हैं , तो इस चैनल को सब्सक्राइब ज़रूर करें। धन्यवाद!
सूर्यबाला जी का जन्म 25 अक्टूबर 1944 को वाराणसी में हुआ। वे एक लेखिका और व्यंगकार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं। अपने जन्मस्थान वाराणसी से सूर्यबाला जी की बहुत सी यादें जुड़ी हैं, जो उनकी कहानियों में गलियों, मोहल्लों के वर्णन में दिखलाई देती हैं। उनका बचपन बड़े ही लाड़-प्यार में धार्मिक, सांस्कृतिक क्रियाकलापों में ही बीता। सूर्यबाला जी की माँ, श्रीमती केशरकुमारी एक आदर्श गृहिणी थी और पिता, स्व. श्री वीरप्रतापसिंह श्रीवास्तव जिला विद्यालय में निरीक्षक पद पर कार्यरत थे। उनके माता-पिता दोनों शिक्षित तथा हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषा के ज्ञता थे।डॉ. सूर्यबाला जी ने ‘रीति साहित्य’ में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के बड़े विद्वान तथा समीक्षक डॉ. बच्चन सिंह के निर्देशन में अपना शोध कार्य पूर्ण किया परिवार और माता-पिता के आदर्शों का गहरा प्रभाव सूर्यबाला जी पर पड़ा और लेखन औरज्ञान साधना उन्हें हमेशा भाइ। डॉ. सूर्यबाला जी ने ‘रीति साहित्य’ में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विद्वान तथा समीक्षक डॉ. बच्चन सिंह के निर्देशन में अपना शोध कार्य पूर्ण किया।सूर्यबाला जी कीअनेक रचनाओं को आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं धारावाहिकों में प्रसारित किया गया है और उनकी अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, उर्दू, मराठी, बंगाली, पंजाबी, तेलुगु, कन्नड़ आदि भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।
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Winner of the Sahitya Academy Award in 1968, Kulwant Singh Virk wrote inboth Punjabi and English. His stories that revolve around the partition of India and Pakistan are especially poignant.I was intrigued by the ending of this story. It could mean different things to different readers, based on their gender, age and when in history they read it. What did you make of it, I am curious to know.
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ग़ालिब पुरुस्कार से सम्मानित कन्हैया लाल कपूर , जिन्हे केएल कपूर के नाम से भी जाना जाता है, व्यंग हास्य और उपहासपूर्ण पैरोडी के लिए जाने गए। अविभाजित भारत में उनका जन्म 1910. में लायलपुर में हुआ। विभाजन के उपरांत वे मोगा पंजाब में आ बसे और यहाँ कॉलेज में प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत रहे। Listen to Hindi kahaniyan and Urdu Kahaniyan by famous as well as lesser known writers. You will find here stories from everyone from Premchand to Ismat Chughtai ; Suryabala to Mohan Rakesh, Kaleshwar and Mannu Bhandari.
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Mamta Kalia started writing in the 70’s, around the time when the role of women in society and family was undergoing a rapid transformation. Her stories often revolve around the themes of love and marriage. They carve out in great detail the quiet desperation of family life and the aching desire for the woman to be more than a sum of her roles as a daughter, mother, wife and sister. Shikha in the story ‘Bolnewali Aurat’ holds in her a desire to burn brightly like a roaring fire and not like the diminutive flame of a prayer lamp, after which she is named.
व्यास सम्मान से पुरुस्कृत ममता कालिया का जन्म वृन्दावन में हुआसाहित्य उन्होंने लिखा ही नहीं, दिल्ली और मुंबई में पढ़ाया भी है. उनकी कहानियों में माध्यम वर्ग की उस नारी की छवि देखने मिलती है जो वास्तविकता के बहुत करीब है - अपने सुख, दुःख, अभिलाषाओं और निराशाओं में पूर्णतः डूबी, जीती जागती - कोई साहित्यिक स्टीरियोटाइप या रूढ़िवादी कट आउट नहीं- ऐसी ही एक औरत है शिखा.
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